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________________ ( ८१ ) ऐसी अवस्था में 'धम्म' की अनुस्मृति करना उनका प्रथम और एक मात्र कर्तव्य था। यदि वे ऐसा न करते तो हम आज यही कहते कि भगवान् का भिक्षु-संघ ही उस समय नहीं था। चूँकि हम निश्चित रूप से जानते हैं कि भिक्षु-संघ उस समय था, इसलिये उससे भी अधिक निश्चित रूप से हमें यह जानना चाहिये कि उन्होंने एक जगह मिलकर 'बुद्ध' और 'धम्म' की अनुस्मृति भी अवश्य की होगी, भगवान् के वचनों का संगायन भी अवश्य किया होगा, फिर चाहे वह किमी रूप में क्यों न हो । त्रुद्ध-गंध की आत्मा और उसका सारा विवान इसी तथ्य की ओर निर्देश करता है, जो इतिहास के साक्ष्य से कहीं अधिक दृढ़ है, और इस विषय में तो इतिहास का साक्ष्य भी, जैसा हम ऊपर निर्देश कर चुके हैं, बहुत अधिक पर्याप्त है। राजगह की मभा की ऐतिहासिकता सिद्ध हो जाने पर भी यह प्रश्न रह ही जाता है कि धम्म और विनय के जिस रूप का बुद्ध के इन प्रथम शिष्यों ने मंगायन और संकलन किया, वह कहाँ तक हमारे वर्तमान रूप में प्राप्त सुत्न-पिटक और 'विनय-पिटक' में मिलता है। इस प्रश्न का उत्तर अत्यन्त संयत वाणी में और क्रमशः ही दिया जा सकता है, यद्यपि आचार्य बुद्धघोष ने युत्त-पिटक और विनयपिटक के विभिन्न भागो के नाम ले ले कर यह दिखाया है कि उनका मंगायन प्रथम संगीति में ही किया गया था। फिर भी आधुनिक विद्यार्थी तो उनके इस साक्ष्य का मावधानी से ही ग्रहण करेगा। प्रथम सगीति के वर्णन में एक ध्यान देने योग्य बात यह है कि वहाँ धम्म (मुक्त) और विनय के मंगायन की ही बात कही गई है। अभिधम्म के संगायन की वात वहाँ नहीं है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अभिधम्म-पिटव की रचना प्रथम संगीति से बाद के काल की है। किन्तु यह निष्कर्ष बौद्ध परम्परा को मान्य नहीं है। आचार्य बुद्धघोप ने प्रथम संगीति के अवसर पर हो अभिधर्म के भी संगायन का उल्लेख किया है। यूआन् मखादेव-सुत्त (मज्झिम. २।४।३) एवं महापरिनिब्बाण-सुत्त (दीघ. २१३) आदि । १. ततो अनन्तरं--धम्मसंगणि-विभङ्ग ञ्च, कथावत्थुञ्च पुग्गलं, धातु यमक-पट्टानं, अभिधम्माति वुच्चतोति । एवं संवणितं सुखुमनाणगोचरं, तन्तिं संगायित्वा इदं अभिधम्मपिटकं नामाति वत्वा पञ्च, अरहन्तसतानि सज्झायमकंसु । सुमंगलविलासिनी की निदान-कथा) मिलाइये समन्त-पासादिका की निदान-कथा भी।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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