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________________ [ ५० ] वैशेषिक, नैयायिक आदिकी ईश्वरविषयक मान्यताका तथा साधारण लोगोंकी ईश्वरविषयक श्रद्धाका योगमार्ग में उपयोग करके ही पतञ्जलि चुप न रहे, पर उन्होंने वैदिके ज्ञानेका उदार प्रयत्न किया है । इस प्रयत्नका अनुकरण श्रीयशोविजयजीने भी अपनी " पूर्वसेवाद्वात्रिंशिका " " आठदृष्टियोंकी सज्झाय " आदि ग्रन्थोंमें किया है । एकदेशीयसम्प्रडायाभिनिवेशी लोगोंको समजानेके लिये ' चारिसंजीवनीचार ' न्यायका उपयोग उक्त दोनों आचार्यों ने किया है । यह न्याय ar मनोरञ्जक और शिक्षाप्रद है । इस समभावसूचक दृष्टान्तका उपनय श्रीज्ञानविमलने आठदृष्टिकी समय पर किये हुए अपने गूजराती टबेमें बहुत अच्छी तरह घटाया है, जो देखने योग्य है । इसका भाव संक्षेपमें इस प्रकार है । कीसी खीने अपनी सखीसे कहा कि मेरा पति मेरे अधीन न होनेसे मुझे बडा कष्ट है, यह सुन कर उस आगन्तुक सखीने कोई जड़ी खिला कर उस पुरुषको बैल बना दिया, और वह अपने स्थानको चली गई । पतिके बैल बनजानेसे उसकी पत्नी दुःखित हुई, पर फिर वह पुरुषरूप बनाने का उपाय न जाननेके कारण उस बैलरूप पतिको चराया करती थी, और उसकी सेवा किया करती थी । कोसी समय अचानक एक विद्याधरके मुखसे ऐसा सुना कि अगर बैलरूप पुरुपको संजीवनी नामक जडी चराई जाय तो वह फिर असली रूप
SR No.010623
Book TitlePatanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1922
Total Pages249
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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