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________________ [२६] जैन सम्प्रदाय निवृत्ति-प्रधान है । उसके प्रवर्तक भगवान् महावीरने बारह साल से अधिक समय तक मौन धारण करके सिर्फ आत्मचिन्तनद्वारा योगाभ्यासमें ही मुख्यतया जीवन बिताया। उनके हजारों शिष्य तो ऐसे थे जिन्होंने घरवार छोड कर योगाभ्यासद्वारा साधुजीवन विताना ही पसंद किया था। जैन सम्प्रदायके मौलिक ग्रन्थ आगम कहलाते हैं। उनमें साधुचर्याका जो वर्णन है, उसको देखनेसे यह स्पष्ट जान पडता है कि पांच यम; तप, स्वाध्याय आदि नियम; इन्द्रिय-जय-रूप प्रत्याहार इत्यादि जो योगके खास अङ्ग हैं, उन्हींको साधुजीवनका एक मात्र प्राण माना है। जैनशास्त्रमें योगपर यहां तक भार दिया गया है कि पहले तो वह मुमुक्षुओंको आत्मचिन्तनके सिवाय दूसरे कायोंमें प्रवृत्ति करनेकी संमति ही नहीं देता, और अनिवार्य रूपसे प्रवृत्ति करनी आवश्यक हो तो वह निवृत्तिमय प्रवृत्ति करनेको कहता है। इसी निवृत्तिमय प्रवृत्तिका नाम उसमें अष्टप्रवचनमाता है। साधुजीवनकी दैनिक और रात्रिक "उद्दसहि नमणसाहस्सीहिं छत्तीसाहिं अजिबासाहसीहिं ' उववाइसूत्र । २ देखो 'प्राचाराग. सूत्रकृताङ्ग, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, मूलाचार, श्रादि । ३ देखो उत्तराध्ययन अ० २४ ।
SR No.010623
Book TitlePatanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1922
Total Pages249
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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