SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तुत पुस्तक की रचना को देख कर हमारी यह इच्छा हुई कि इसके साथ एक अनुरूप संक्षिप्त व्याख्या का होना भी आवश्यक है । अतएव हमने संपादकजी को सलाह दी कि वे इसके उपयुक्त एक व्याख्या भी तैयार करके संलग्न करें। तदनुसार उन्होंने "परिमल" नामक विवृत्ति लिख कर इसकी उपयोगिता बढ़ा दी है और परिश्रम - पूर्वक अच्छे ढग से इसका संपादन किया है । इस पुस्तक को "राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला" में प्रकाशित करते हुये हमें हर्ष हो रहा है और आशा है कि सस्कृत-साहित्य के प्रेमियों को यह आदरणीय वस्तु प्रतीत होगी । चैत्र ५, शक स० १८७९ ता० २६-३-५७ मुनिजन विजय सम्मान्य सञ्चालक, राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मदिर जयपुर ।
SR No.010620
Book TitleDurgapushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Gangadhar Dvivedi
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1957
Total Pages201
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy