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________________ (१४) श्री शंकराचार्य का समय ईसा की ८ वीं शताब्दी और विक्रम की ६वीं शताब्दी माना गया है और पृथ्वीधराचार्य श्रीपीठ की गुरुपरम्परा में इनले दूसरे स्थान पर आते है अत: इनका समय,इसी के लगभग होना चाहिए। गहन दार्शनिक ग्रन्थों की रचना करने के अतिरिक्त सरस स्तोत्र-रचना करके पारमार्थिक एवं व्यावहारिक पक्षों का समन्वय करते हुए लोककल्याण का सदुद्देश्य भगवान शंकर ने अपनी परम्परा में निहित किया था। इसी परम्परा का पालन करते हुए श्रीपृथ्वीधराचार्य भी स्तोत्रकार के रूप में हमारे सामने आते हैं। श्रीपृथ्वीधराचार्य ने अपने गुरु का परिचय स्तोत्र के ३७ पद्य में इस प्रकार दिया है: श्रीसिद्धिनाथ इति कोऽपि युगे चतुर्थे प्रादुर्वभूब . करुणावरुणालयेऽस्मिन् । श्रीशम्सुरित्यभिधया स मयि प्रसन्न चेतश्चकार लकलागमचक्रवर्ती ॥ उक्त पद्य की व्याख्या करते हुए भाष्यकार पद्मनाभ ने 'करुणया युक्ने वरुणालये ग्रामविशेषे नर्मदातटनिकटवर्तिनि' ऐसा. स्थानोल्लेख किया है परन्तु श्रीशंकर भगवत्पाद का जन्मस्थान कालपी बताया जाता है। श्रीपृथ्वीधराचार्यकृत भुवनेश्वरीमहास्तोत्र एक प्रसिद्ध एवं प्राचीन स्तोत्र है और इसकी हस्तलिखित प्रतियाँ अनेक ग्रन्थ भण्डारों में प्राप्त हैं। इसका निरन्तर पाठ करके श्रेयःसम्प्राप्ति की कथाएं भी सुनी गई है। परन्तु इस स्तोत्र का मुद्रण वहुत पूर्व हुआ हो, ऐसा ज्ञात नहीं होता | निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से भवानीसहस्रनाम .. एक छोटी सी नित्यपाठ पुस्तक, के अन्त में यह स्तोत्र प्रकाशित हुआ था। इसके पश्चात् रसशाला, गोंडल से प्रकाशित आयुर्वेदरहस्य में भी कुछ वर्षों पूर्व यह देखने में आया परन्तु इस का सभाष्य संस्करणं स्वतन्त्ररूप में कहीं छपा हो, ऐसा देखने... में नहीं आया। . .......... ............. ... ..... ... राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के संग्रह में संख्या ८२६ पर पद्मनाभकृत भाष्यसहित श्रीभुवनेश्वरीस्तोत्र की प्रति जब मेरे देखने में आई, तब मैंने विभाग के सम्मान्य सञ्चालक मुनि श्रीजिनविजयजी महाराज को वह प्रति दिखाई और इसके प्रकाशन की प्रर्थना की। उन्हों ने इसे सहर्ष स्वीकार किया और इस के सम्पादन करने की आक्षा मुझे प्रदान की । जव पुस्तक की प्रतिलिपि हो गई तब इस के पाठ एवं स्थल शङ्कराचार्यप्रादुर्भावस्तु विक्रमार्कसमयादतीते ८४५ पञ्चचत्वारिंशदधिकाष्टशतीमिते संवत्सरे केरलदेशे कालपीग्रामे शिशुलार्मयों भार्यायां समभक्त-। आयविद्या- सुधाकरे चतुर्थः प्रकाशः पृ० २२६, २२७ । केटलाम्स कैटनागरम भाग : ३५५ ।
SR No.010619
Book TitleBhuvaneshvari Mahastotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages207
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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