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________________ व्योम ही वज्र':कहलाता है जो शाश्वत त्रिवृत् ब्रह्म का प्रतीक है। इसी का - क्रियात्मक रूप प्रजापति है जिसकी शक्ति सरस्वतीनाम से गतिशालिनी हो कर सृष्टिक्रम में प्रवाहित हो रही है। सरस्वती हंसवाहिनी है। वह पार्थिव हंस पर नहीं, अपितु प्राणिमात्र में श्वास अर्थात् प्राणवीज के अन्तर्वहिर्गमनक्रियारूप " हं" और "स" पर विराजमान है। वेदों की जननी होने के कारण वाक् अथवा सरस्वती विद्या और बुद्धि की देवता है। बुद्धि अथवा प्रज्ञा ही मनुष्य में सर्वोपरि है । ज्ञान, बल, क्रिया ये तीनों परमात्मा की विशिष्ट शक्तियां हैं। यों तो भौतिक शक्ति (वल ) और कर्म (क्रिया) का भी बहुत महत्व है परन्तु बुद्धि अथवा ज्ञानशक्ति इन सव में विशिष्ट है। इस शक्ति का मन अथवा मानस से सम्बन्ध है और मन ही मनुष्य है । जितने मनुष्य हैं, उतने ही मन हैं । उतने ही बुद्धि के भेद भी हैं । परन्तु उन सब का मूल ब्रह्ममानस में है। वही ब्रह्मसर है और उसी ब्रह्मसर में उत्पन्न होनेवाली वाक् का नाम सरस्वती है जो मानव मात्र की बुद्धि की अधिष्ठात्री है। उसी के प्रसादरूप में प्रत्येक मानस उस मानस . सरोवर में से अपना अपना मानसपात्र भरता है और अपनी भौतिक शक्ति एवं क्रिया का विकास करता है। अपने मानसपात्र में आये हुए ज्ञान अथवा बुद्धिरूपी सहज स्वच्छ जल (प्रकाश) को निर्मल बनाये रखना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। अविद्याजन्य रागद्वेषादि इसको आविलःकरते रहते हैं । उस समष्टिभूत अनन्त ज्ञान-भण्डार एवं विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का निरन्तर चिन्तन और स्तवन करके ही वह अपने निर्मल ज्ञान को सुरक्षित रख सकता है। अत एव भगवती सरस्वती का आराधन और स्तवन अकारण नहीं है। . श्रीभुवनेस्वरी-महास्तोत्र मन्त्रगर्भित स्तोत्रपाठ है। मन्त्रजाप और स्तोत्रपाठ से अभीष्टसम्प्राप्ति होती है। मन्त्र द्वारा जीव त्रिविध तापों का शमन करने में समर्थ होता है। वह इस से स्वर्गसुखों को पा सकता है। चतुरशीति-लक्ष जीवयोनियों के भवचंक्रमण से मुक्ति भी वह इसी मन्त्र-साधना के बल पर प्राप्त कर सकता है। . १. क ऋग्वेद में सरस्वती को “पावीरवी" अर्थात वज्र की पुत्री बताया गया है । । . . यहाँ वज्र से अपरिवर्तनीय ब्रह्म और उसकी पुत्री से वाकशक्ति समझना ... . चाहिए। ख. वाग वै सरस्वती पावीरवी । ऐतरेय० ३।३७ । २. . वज्रो वै त्रिवृत् । पड्विंश ब्राह्मण । ३।३३४ ।। ब्रह्म वै त्रिवृत् । ताण्ड्यब्राह्मण २।१६।४। ३. हकारेण बहिर्यान्तं विशन्तं च सकारतः। .. .
SR No.010619
Book TitleBhuvaneshvari Mahastotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages207
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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