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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भट्टारक संप्रदाय [१२२ --- श्रीमूलसंधे. भ. श्रीधर्मचंद्रोपदेशात् बघेरवालज्ञातीय ..॥ (का. ४) लेखांक १२३ - चौवीसी मूर्ति ___ शके १५६७ पार्थिव नाम संवत्सरे श्रीमूलसंधे भ. धर्मचंद्रोपदेशात् बघेरवालज्ञातीय खंडारिया गोत्रे श्रावण · · | (दे. मा. दर्यापुरकर, नागपुर ) लेखांक १२४ - ? मूर्ति शके १५६९ सर्व · 'जेष्ठ श्रीमूलसंघे भ. श्रीधर्मभूषण तत्पट्टे भ. देवेंद्रकीर्नि तत्यहे भ. कुमुदचंद्र तत्प? भ. श्रीधर्मचंद्र तदानाये धर्माचार्य पासकीर्ति तदुपदेशात् साहितवालज्ञातीय ॥ (बाळापुर, अ. ४ पृ. ५०४) लेखांक १२५ - चौबीसी मूर्ति वों नम सिद्धेभ्यः गोमटस्वामी आदीश्वरमूलनाईक चोवीस तीर्थकरकि परतीमा चारकीरति पंडित धरमचंद्र बलातकार उपदसा शके १५७० सर्वधारी नाम संवत्सरे वैशाख वदी २ सुकुरवार देहरांकी पत्ती स्यहै गेरवाल चवरे गोत्र जीनासा... || श्रवणबेलगुल, [जैनशिलालेख संग्रह १ पृ. २२९ ] लेखांक १२६ - धर्मचंद्र गुरु पूजा ( पूजा-) कुमुदचंद्रपदे प्रयजे वरं । सुगुणधर्मसुचंद्रमुनीश्वरं ॥ १॥ (स्तुति-) स भवतु वरभूत्यै धर्मचंद्रो मुनींद्रो द्विजकुलमहितोसौ वासुदेवेन बंद्यः ॥ १० ॥ [म. ६३] For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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