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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भट्टारक संप्रदाय [ ७२ - गणे भ. श्रीशांतिसेनोपदेशतः का. व. चिंतामण ॥ ( ना. ६१) लेखाक ७२ - पार्श्वनाथ मूर्ति शक १६७८ माघ सुद १४ मूलसंघे भ. शांतिसेनोपदेशात् प्रतिष्ठितं कारंजा ग्रामवास्तव्येन नेवाज्ञाति फु. गोत्र पु. चिंतामणसा नित्यं प्रणमंति ॥ (पा. ५०) लेखांक ७३ - [हरिवंश रास] संवत १८१६ परमाथी नाम संवत्सरे श्रीदेवलग्राम श्रीचंद्रप्रभचैयालये श्री भ. श्रीनरेंद्रसेन तत्पट्टे श्रीशांतिसेनजी म. सार्थकनामधेय तस्य शिष्य श्री अर्जका श्री शिखरश्रीजी तस्य शिष्य पंडित बानार्शिदासजी स्वहस्ते लिख्यतं पठनार्थ श्रीरस्तु ॥ (ना. २०) लेखांक ७४ - शांतिनाथ विनंति झारखंड एसो हर देस तस मध्य ए नगरी विसेस । अमरपुरी सम सोभे ठाम रामटेक दिसे अभिराम ॥२ हंसा सुत सितलमा नाम खटबढ गोत धरमको धाम । सकल स्वन्यात कुटुंब सहित यात्रा करि मनमा धरि प्रीत ॥ १४ मूलसंघ पुष्करगछ धनी शांतिसेन विद्यागुणमनी। तत सेवक नित चरने रहे गोमासा सुत रतन कहे ।। १६ सके सोलसेने उसार चइत्र कृष्ण नवमी रविवार । ए. विनती जे भणे नरनार तेह घर मंगल जयजयकार ।। १७ लेखांक ७५ - . ...तानु कहे शांतिसेन गछपति संघ चतुर्विध सोभत पासे ।। २ ...पाट नरेंद्रसुसेनके राजन दर्शनथी सुखसंपति पावे ॥ ३ . For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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