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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्पादकीय शिलालेख, ताम्रपट व ग्रंथ-प्रशस्तियां इतिहास-निर्माणके अमूल्य और सर्वोपरि प्रामाणिक साधन है, यह बात अब सर्व स्वीकृत है। जैनधर्म संबंधी ये प्रमाण अभीतक पूर्णरूपसे सुलभ नहीं हो सके इसी कारण जैनधर्मका इतिहासभी अभी तक प्रामाणिकरूपसे प्रस्तुत नहीं किया जा सका । सौभाग्यसे इस कमीकी अब धीरे धीरे पूर्ति होनेकी आशा होने लगी है । अनेक प्रकाशन संस्थायें अब इस ओर अपना ध्यान दे रही हैं । माणिकचन्द ग्रंथमालाकी तीन जिल्दोंमें डॉ. गेरीनो द्वारा संकलित सूची में उल्लिखित प्रायः समस्त जैन लेखोंका संग्रह हिन्दी भावानुवाद सहित प्रकाशित हो गया है । औरभी अनेक छोटे बड़े लेखसंग्रह प्रकाशित हुए हैं । हमारी यह ग्रंथमालाभी इस दिशामें प्रयत्नशील है । अभी अभी जो इस ग्रंथ मालामें Jainism in South India and Some Jaina Epigraphs शीर्षक ग्रंथ प्रकाशित हुआ है वह इस बातका प्रमाण है कि इन लेखोंसे कैसा अज्ञात इतिहास प्रकाशमें आता है। प्रस्तुत पुस्तकमें प्रो. विद्याधर जोहरापुरकरने भट्टारकसम्प्रदाय संबंधी ७६६ लेख संग्रह किये हैं। और उनका हिन्दी भावार्थभी लिखा है, तथा ऐतिहासिक टिप्पणियां भी जोडी हैं । नामादि वर्णानुक्रमणियोंसे ग्रंथका उपयोग करनाभी सुलभ बना दिया गया है । यद्यपि इनमेंके बहुतसे लेख पहलेसे हमारी दृष्टिमें चले आरहे हैं । किन्तु यहां जो उन्हें व्यवस्थासे कालक्रमानुसार रखा गया है उससे अनेक तथ्य प्रकट होते हैं। जिनका विवेचन किया जाना आवश्यक प्रतीत होता है। प्रस्तावनामें संकलनकर्त्ताने अनेक सूचनाएं की हैं जिनपर ऊहापोह व मतभेद संभव है। किन्तु अपने प्राक्कथनमें उन्होंने यह प्रतिज्ञा की है कि " इस पुस्तकके अगले भाग प्रकाशित होने पर इस विषयपर विस्तारसे लिखनेका सम्पादकका विचार है।" इसपरसे हमें धैर्यपूर्वक ग्रंथके अगले भागकी प्रतीक्षा करना चाहिये । हमे इस उदीयमान साहित्यसेवीसे भविष्यके लिये बहुत बड़ी आशायें हैं। हीरालाल जैन आ. ने. उपाध्ये For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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