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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८ लेखांक ५६ - पार्श्वनाथ पूजा लेखांक ५७ भट्टारक संप्रदाय इत्याद्यगणित अतिशय क्षेत्रं पार्श्वजिनं वंदे सुपवित्रं । पूज्यं सेनगणे वरचित्रं छत्रसेन संततवरमित्रं ॥ Suda Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir झूलना महबूब शरीर सहरमे जी पातिसाहि बडा परब्रह्म है रे । पातिसा अंदर बैठि रहा अपने रस रंगमे खेलत रे || मनराय बुलाय दीवान किया अखत्यार दिया सब तिसके रे । छत्रसेन जती बारबार कहे बडा सोर हुवा सव नगरमे रे ॥ १ ॥ ( म. ७९ ) लेखांक ५९ - पद्मावती स्तोत्र लेखांक ५८ - अनंतनाथ स्तोत्र भुवनविदितभावं देवदेवेंद्रवंद्यं परमजिनमनंतं स्तौति यो शुद्धभावैः । भवति सुभगसर्गी मुक्तिनाथश्च नित्यं स्तवनमिदमनिंद्यं भाषितं छत्र सेनैः ॥ ११ ( कारंजा ) पुत्रो तब मात मामक परि कृत्वा कृपा मंबिके देयं वांछितवस्तु चिंतितफलं यत्प्रार्थनेयं मम । विघ्नानिष्टकरान् स्वपापजनितान् दुःखप्रदान् संततं शीघ्रं संहर संहर प्रियतमे श्रीछत्रसेनस्य वै ॥ १४ लेखांक ६० - अनिरुद्ध छप्पय [ ५६ कारंज रंजक नगर मे मूल जिनेश्वर देव । छत्रसेन गछति कहे हीर करे तस सेव ।। १ चतुर पंच सप्तैक वामगति गणिजो दक्षं । For Private And Personal Use Only ( ना. ७८ ) ( उपर्युक्त )
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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