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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २७६ लेखांक ७०१ - द्वादशी कथा भट्टारक संप्रदाय लेखांक ७०२ रोग शोक संतापह ढले । मनवांछित पद पूरण मले ॥ श्रीभूषण सुत द्वारा लहे । ब्रह्म ज्ञानसागर इम कहे ॥ ३६ लेखांक ७०३ - अक्षरबावनी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ७०१ - दशलक्षण कथा भट्टारक श्रीभूषण वीर । तिनके चेला गुणगंभीर || ब्रह्म ज्ञानसागर सुविचार । कही कथा दशलक्षण सार ॥ ३७ [ जैन व्रतकथा संग्रह, दिल्ली, १९२१ ] लेखांक ७०४ - राखीबंधन रास ( ना. ३ ) काष्ठासंघ समुद्र विविध रत्नादिक पूरित । नंदितछ भाग पाप मिध्यामत चूरित || विद्यागुणगंभीर रामसेन मुनि राजे । तास अनुक्रम धीर श्रीभूषण सूरि गाजे || कलियुगमां श्रुतकेवल दर्शनगुरु गछपति । तास शिष्य एवं वदति ब्रह्म ज्ञानसागर यति ॥ ५३ वंश बघेर प्रसिद्ध गोत्र एह भणिज्जे । श्रावक धर्म पवित्र काष्ठासंघ गणिज्जे || संघपति बापु नाम लघु वय बहु गुणधारी । दयावंत निर्दोष सब जनकु सुखकारी ॥ उसकी प्रीत विशेषये पढनेकु बावनी करी । ब्रह्म ज्ञानसागर वदति आगमतत्त्व अमृत भरी || ५४ For Private And Personal Use Only ( म. ७५ ) विद्याभूषण गुरु गछपती । श्रीभूषण शिष्ये शुभ मती | ब्रह्म ज्ञान बोले मनोहार । राखीबंधन कथा विचार || ७६ 1 ( ना. ८ )
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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