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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७० भट्टारक संप्रदाय [६७१ - श्रीविशालकीर्ति पट्टोद्धरण नंदियङगच्छ उद्योतकर । श्रीविश्वसेन भवियण जयो सयल संघ वंदउ पर ।। ३ (म. ४९) लेखांक ६७२ - लीधो संयम रयण मयण मच्छरमे हलाव्यो । तीनइ अवसरी श्रीपाल साहि कुल कलश चडाव्यो । श्रीडूंगरपुरनवरी ग्रही दीक्षा दिगंबर । उत्सव हुई अनेक भोज घर भोजतने पर ॥ श्रीविसालकीर्ति निज करकमली पद प्रमाणती अप्पयो । कर्म सीकला दीन दीन प्रतप्यो विश्वसेन गुरु थप्पयो ॥ १६० ( म. ४९) लेखांक ६७३ - रूपवंत राजान शील संजम तु छजि । चाल्यु दक्षण क्षेत्र संजम तु महिअलि गजि ॥ श्रीकाष्टसंघ नंदीयडगच्छ विद्यागुण वखाणीइ । सूरि विद्याभूषण कहि विश्वसेन जगि जाणीइ ।। ५ (म. ४९) लेखांक ६७४ - सीताहरण विजयकीर्ति काष्ठासंघ शृंगार विविध विद्यारससागर । नंदीतटगच्छ काव्य पुराण गुण आगर ।। सूरि विश्वसेन पाटि प्रगट सूरि विजयकीर्ति बंदित चरण । महेंद्रसेन एवं वदति राम सीता मंगलकरण ॥ १६० (म. ८५) लेखांक ६७५ - बारामासी काष्ठासुसंघ नंदीतट मंडित विश्वसेनगुरु गाजतुही। विजयकीर्ति तस पाट प्रभाकर महेंद्रसेन शिष्य राजतुही ।। १३ For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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