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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काष्ठासंघ - माथुर गच्छ इस गच्छ का नाम मथुरा नगर से लिया गया है । " दर्शनसार के अनुसार संवत् ९५३ में रामसेन इस संघ के आचार्य थे । उन ने निःपिच्छ का उपदेश दिया अर्थात् मुनियों के लिए पिच्छी के धारण का निषेध किया [ले. ५४१ ] । इस संघ के पहले ऐतिहासिक उल्लेख आचार्य अमितगति के ग्रन्थों में पाये जाते हैं । आप की गुरुपरम्परा देवसेन -- अमितगति - नेमिषेण - माधवसेन- अमितगति इस प्रकार थी । आप ने संवत् १०५० में मुंजराज के राज्यकाल में सुभाषितरत्नसन्दोह लिखा, संवत् १०६८ में वर्धमाननीति की रचना की, संवत् १०७० में धर्मपरीक्षा तथा संवत् १०७३ में पंचसंग्रह का लेखन पूर्ण किया । तत्त्वभावना, उपासकाचार, द्वात्रिंशिका और आराधना ये आप के अन्य ग्रन्थ हैं (ले. ५४२-४९ ) । माथुर संघ के दूसरे प्राचीन आचार्य छत्रसेन थे । आप के शिष्य आलोक ने संवत् ११६६ में परमार विजयराज राज्यकाल में ऋषभनाथ का मन्दिर बनवाया [ ले. ५५० ] । ९६ इस संघ के तीसरे ज्ञात आचार्य गुणभद्र हैं । आप ने संवत् १२२६ में बनवाये गये पार्श्वनाथ मन्दिर की विस्तृत प्रशस्ति लिखी है [ ले. ५५१ ] | यह मन्दिर चौहान वंशीय सोमेश्वर के राज्यकाल में बना था ।" ९५ इस गच्छ के उत्तर कालीन विशेषणों में पुष्कर गण और लोहाचार्यानाय का अन्तर्भाव होता है । पुष्करगण के विषय में सेनगण के हिन्दी सार का आरम्भ देखिए । लोहाचार्य से सम्भवतः अंगज्ञानी आचार्यों में अन्तिम आचार्य लोहार्य का अभिप्राय है - प्रस्तावना प्रकरण २ देखिए । ९६ अमितगति के विषय में विस्तृत विवेचन देखिए - जैन साहित्य और इतिहास पृ. १७२ ९७ इस लेख के अतिरिक्त विजयराज के अन्य उल्लेख ज्ञात नहीं हैं । ९८ सोमेश्वर चौहान वंश के अन्तिम राजा पृथ्वीराज के पिता थे । इन का राज्यकाल निश्चित नहीं है 1 For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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