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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ भट्टारक संप्रदाय [५१३ - भव्यजनैः क्रियमाणे श्रीजिननाथाभिषेके सर्वे जनाः सावधाना भवतु । [जैनमित्र, १९-६-१९२४ ] लेखांक ५१४ - विंध्यगिरि अभयचंद्र संवत् १५४८ वरुषे चैत्र वदि १४ दने भ. श्री. अभयचंद्रकस्य शिष्य ब्रह्म धर्मरुचि ब्रह्म गुणसागर पं. की का यात्रा सफल । (जैन शिलालेख संग्रह भा. १ पृ. ३३४ ) लेखांक ५१५ - पद्मप्रभपूजा जे नर निर्मल जे कुसुमांजलि मन वच काया सुद्ध करी । श्रीअभयचंद कहे निश्चय लहिये स्वर्ग राज कैवल्य पुरी । (म. ५६) लेखांक ५१६ - ( गोमटसार टीका) निम्रन्थाचार्यवर्येण त्रैविद्यचक्रवर्तिना। संशोध्याभयचंद्रेणालेखि प्रथमपुस्तकः ॥ ( अ. ४ पृ. ११६) लेखांक ५१७ - षोडशकारण पूजा अभयनंदि सिरिपंकजिणंदो सिरिदेविदो विज्जानंदी मल्लिमुनी । सिरि लच्छीचंदो अभयचंदो अभयनंदि सुमति द्विगुणी ॥ (म. ३) लेखांक ५१८ - दशलक्षण पूजा ब्रह्मचर्य सुव्रत पर ब्राह्मी सुंदरी प्रथम वृषभ जिन सुतारक । श्रीअभयनंदिगुरु सुशील सुसागर सुमतिसागर जिनधर्मधर ।। (म. ३) ..... For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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