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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९० www.kobatirth.org भट्टारक संप्रदाय पद्मावती मुझ प्रसन्न थई ने नित्य करो जयकार जी । लेखांक ५०५ - सगरचरित्र Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ५०४ - ( ना. ६) महीचंद्र सूरिवर तेह पाटे जेन्ह जाने छे देस विदेस रे । ब्रह्म जयसागर इम कहे गावे सगरनो रास मनोहार रे । कांई संवत सप्तोत्तरो ते सार कांई माघ नवमी बुधवार रे । अपर पछे रचना रची काई गावे सहु नर नार रे ॥ घोघा नयर सुहावनो श्रीआदीसुरने दरबार रे । भने नावे सांभले काई तेह घरे जयकार रे ॥ For Private And Personal Use Only [ ना. ६] लेखांक ५०६ - पट्टावली .... लघुशाखाहुंबडकुलशृंगारहा र दिल्ली गुर्जरसिंहासनाधीश बलात्कारगणबिरुदावलीविराजमान भ. श्रीमेरुचंद्रगुरूणाम् ॥ [ जैन सिद्धांत १७ पृ. ५२ ] लेखांक ५०७ - आदिनाथमूर्ति विद्यानंदि श्रीजिनो जयति । स्वस्ति श्री १८०५ वर्षे शाके १६७५ प्रवर्तमाने वैसाखमासे शुक्लपक्षे चंद्रवासरे गुर्जरदेशे सूरतबंदरे जुग्यादिचैत्यालये श्रीमूलसंघे नंदीसंघे... भ. श्रीमही चंद्रदेवाः तत्पट्टे भ. श्रीमेरुचंद्र देवाः तत्पट्टे भ. श्रीजिनचंद्रदेवाः तत्पट्टे भ. श्रीविद्यानंदीगुरूपदेशात् सूरतवास्तव्य रायकवाल जातीय धर्मधुरंधर... ॥ [ सूरत, दा. पृ. ३१] लेखांक ५०८ - ( आराधना - सकलकीर्ति ) संवत १८२२ मिति मार्गसीर सुदि ८ बुधवारे नागपुरमध्ये श्रीमूलसंघे भ. श्रीविद्यानंदीजी तच्छिष्य ब्रह्मजिनदासेन लखितं ॥ [ ना. ९४ ]
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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