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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बलात्कार गण-नागौर शाखा इस शाखा का आरम्भ भ. रत्नकीर्ति से होता है। आप भ. जिनचन्द्र के शिष्य थे जिन का वृत्तान्त दिल्ली-जयपुर शाखा में आ चुका है । आप का पट्टाभिषेक संवत् १५८१ की श्रावण शु. ५ को हुआ तथा आप २१ वर्ष पट्ट पर रहे (ले. २७७ ) । इन के बाद भ. भुवनकीर्ति संवत् १५८६ की माघ कृ. ३ को पट्टारूढ हुए तथा ४ वर्षे पट्ट पर रहे । आप जाति से छावडा थे (ले. २७८ )। आप के शिष्य मुनि पुण्यकीर्ति के लिए संवत् १५९५ की वैशाख शु. २ को मेडता शहर में राठौड राव मालदेव के राज्यकाल में अणुव्रतरत्नप्रदीप की एक प्रति लिखाई गई (ले. २७९ )। इन के बाद भ. धर्मकीर्ति संवत् १५९० की चैत्र कृ. ७ को पट्टारूढ हुए तथा १० वर्ष पट्ट पर रहे । आप जाति से सेठी थे (ले. २८० ) । संवत् १६०१ की फाल्गुन शु. ९ को आप ने एक चंद्रप्रभ मूर्ति स्थापित की ( ले. २८१ )। आप के बाद संवत् १६०१ की वैशाख शु. १ को भ. विशालकीर्ति पट्टारूढ हुए तथा ९ वर्ष पट्ट पर रहे । आप जाति से पाटोदी थे तथा आप का निवास जोवनेर में था ( ले. २८२ )। आप के पट्टशिष्य भ. लक्ष्मीचन्द्र संवत् १६११ की आश्विन कृ. ४ को पट्टाधीश हुए तथा २० वर्ष पट्ट पर रहे । ये जाति से छावडा थे ( ले. २८३ )। इन के बाद संवत् १६३१ की ज्येष्ठ शु. ५ को भ. सहस्रकीर्ति पट्टाधीश हुए तथा १८ वर्ष भट्टारक पद पर रहे । ये पाटणी गोत्र के थे (ले. २८४ )। इन तीनों भट्टारकों के कोई स्वतन्त्र उल्लेख नहीं मिले हैं। सहस्रकीर्ति के पट्ट पर संवत् १६५० की श्रावण शु. १३ को नेमिचन्द्र अभिषिक्त हुए जो ११ वर्ष भट्टारक पद पर रहे। इन का गोत्र ठोल्या था (ले. २८५) । संवत् १६५४ की आषाढ कृ. ११ को __५१ जोधपुर के राजा-सन १५११-१५६२ । For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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