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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बलात्कार गण-दिल्लीजयपुर शाखा १११ हुए । इन के आम्नाय में संवत् १७३० की मार्गशीर्ष शु. १३ को वर्णी चोखचन्द्र ने समरपुर में मूलाचार की एक प्रति लिखी ( ले. २६९)। ___ नरेन्द्रकीर्ति के पट्टशिष्य सुरेन्द्रकीर्ति संवत् १७२२ की श्रावण शु. ८ को पट्टारूढ हुए । इन का कोई स्वतन्त्र उल्लेख नहीं मिला है। . इन के अनन्तर संवत् १७३३ की श्रावण कृ. ५ को भ. जगत्कीर्ति पट्टाधीश हुए। आपने संवत् १७४६ की माघ में एक पार्श्वनाथ मूर्ति प्रतिष्ठित की [ले. २७०] । इन के बाद संवत् १७७० की श्रावण कृ. ५ को भ. देवेन्द्रकीर्ति पट्टाधीश हुए । इन की आम्नाय में जयसिंह के राज्यकाल में सांगावत शहर में पण्डित लक्ष्मीदास हुए ।" इन के उपदेश से कवि खुशालचंद ने संवत १७८० में जहानाबाद में महमदशाह के राज्यकाल में हिन्दी हरिवंशपुराण की रचना की [ ले. २७१ ] । संवत् १७८३ की वैशाख कृ. ८ को बांसखोह नगर में जयसिंह के राज्यकाल में देवेंद्रकीर्ति के द्वारा एक प्रतिष्ठामहोत्सव हुआ [ ले. २७२ ] । देवेन्द्रकीर्ति के बाद संवत् १७९० की श्रावण कृ. ५ को महेन्द्रकीर्ति पट्टाधीश हुए । इन की आम्नाय में संवत् १७९७ की श्रावण शु. १४ को साह गोपीराम ने सवाईजयपुर में षट्कर्मोपदेशरत्नमाला की एक प्रति पंडित गोवर्धनदास को अर्पित की [ ले. २७४ ] । महेन्द्रकीर्ति के बाद संवत् १८१५ की श्रावण कृ. ५ को क्षेमेन्द्रकीर्ति पट्टाधीश हुए । उन के बाद संवत् १८२२ की फाल्गुन शु. ४ को सुरेन्द्रकीर्ति का पट्टाभिषेक हुआ । इन के समय भट्टारकपीठ जयपुर में __ ४८ यहाँ से इस शाखा के भट्टारकों की पट्टाभिषेक तिथियाँ ‘बृहद् महावीर कीर्तन' पृ. ५९७ के आधार पर दी गई हैं । ४९ जयसिंह का राज्यकाल १६६९-१७४३ था । ५० दिल्ली के बादशाह-राज्यकाल १७१९-४८ ई. । For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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