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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बलात्कार गण-दिल्लीजयपुर शाखा मूर्ति स्थापित की [ ले. २५७ ] । इसी प्रकार संवत् १५४२ की ज्येष्ठ शु. ८ को आप की आम्नाय में भ. ज्ञानभूषण ने एक मूर्ति स्थापित की ले. २६०] । संवत् १५४३ की मार्गशीर्ष कृ. १३ को जिनचन्द्र ने सम्यग्दर्शन यन्त्र स्थापित किया तथा संवत् १५४५ की वैशाख शु. १० को ऋषभदेव की एक मूर्ति स्थापित की [ले. २६१-६२]। मुडासा शहर में सेठ जीवराज पापडीवाल ने संवत् १५४८ की वैशाख शु. ३ को भ. जिनचन्द्र के द्वारा कई मूर्तियों की प्रतिष्ठा कराई [ले. २६३ ] |" संवत् १५५८ की श्रावण शु. १२ को आप की आम्नाय में ग्वालियर में मानसिंह तोमर के राज्यकाल में नागकुमारचरित की एक प्रति लिखी गई [ले. २६४ । भ. जिनचन्द्र के शिष्यों में पण्डित मीहा या मेधावी प्रमुख थे। ये अग्रवाल जाति के सेठ उद्धरण और उन की पत्नी भीषुही के पुत्र थे। संवत् १५१६ की भाद्रपद शु. ९ को दिल्ली में बहलोलशाह और हिसार में कुतुबखाँ का राज्य था तब झुंझुणपुर में साह पार्थ के पुत्रों ने श्रुतपंचमी उद्यापन किया और उस अवसर पर वट्टकेर कृत मूलाचार की एक प्रति ब्रह्म नरसिंह को अर्पित की। इस शास्त्रदान की प्रशस्ति पण्डित मेधावी ने लिखी [ले.२५३] । संवत् १५३३ की आश्विन शु. २ को हिसार में खंडेलवाल साबी धनश्री ने अध्यात्मतरंगिणी टीका की एक प्रति मेधावी को अर्पित की [ले. २५६ ] इसी प्रकार संवत् १५४१ को कार्तिक शु. ५ को खंडेलवाल साध्वी कमल श्री ने नीतिवाक्यामृत टीका की एक प्रति आप को अर्पित की ४३ ये विद्यानन्दि सम्भवतः सूरत शाखा के दूसरे भट्टारक हैं। किन्तु उन से पृथक् भी हो सकते हैं । इस दशा में ले. ५२३] में उल्लिखित विद्यानन्दि ये ही हैं। ___४४ ये ज्ञानभूषण ईडर शाखा के भ, भुवनकीर्ति के शिष्य हैं। ४५ ये मूर्तियां अमृतसर से मद्रास तक प्रायः सभी गांवों के दिगम्बर जैन मन्दिरों में पाई जाती हैं । सिर्फ नागपुर के जैन मन्दिरों में ही इन की संख्या सौ से अधिक है। यहां यह लेख सिर्फ नमूने के तौर पर लिया गया है। इस प्रतिष्ठा में भानुचन्द्र और गुणभद्र इन भट्टारकों के भी उल्लेख मिलते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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