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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar बलात्कार गण-उत्तर शाखा एक बार एक प्रतिष्ठा महोत्सबके समय व्यवस्थापक गृहस्थ उपस्थित नहीं रहे तब प्रभाचन्द्रने उसी उत्सवको पट्टाभिषेकका रूप देकर भ. पद्मनन्दिको अपने पद पर स्थापित किया (ले. २३३)। पद्मनन्दि संवत् १३८५ की पौष शु. ७ से ६५ वर्ष तक पट्टाधीश रहे । ये ब्राह्मण जातिके थे (ले. २३७)। भावनापद्धति और जीरापल्ली-पार्श्वनाथ-स्तोत्र ये आपकी कृतियां हैं (ले. २४०-४१)। आपने संवत् १४५० की वैशाख शु. १२ को एक आदिनाथ मूर्ति प्रतिष्ठित की [ले. २३९ ] ।" भ. पद्मनन्दिके तीन प्रमुख शिष्योंद्वारा तीन भट्टारकपरम्पराएं आरंभ हुई जिनका आगे अनेक प्रशाखाओंमें विस्तार हुआ। इनमें शुभचन्द्रका वृत्तान्त दिल्ली-जयपुर शाखामें, सकलकीर्तिका वृत्तान्त ईडर शाखामें तथा देवेन्द्रकीर्तिका वृत्तान्त सूरत शाखामें देखना चाहिए। इनके अतिरिक्त मदनदेव (ले. २४५), नयनन्दि (ले. २५१), तथा मदनकीर्ति (ले. २५५) ये पद्मनन्दिके अन्य शिष्योंके उल्लेख मिले हैं । इनमें मदनदेव और मदनकीर्ति सम्भवतः एक ही हैं। ४० पद्मनन्दीकी एक और कृति वर्धमानचरित है। आपके शिष्य हरिचन्द्रने मल्लिनाथ काव्य लिखा है। [अनेकान्त वर्ष १२, पृष्ठ २९५ ] ४१ इस प्रतिष्ठाके समयके शासकका नाम मूलमें बहुत ही अशुद्ध छपा है इस लिए उसका इतिहासमें निर्देश नहीं पाया गया । For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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