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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भट्टारक संप्रदाय धर्मचन्द्र के पट्ट शिष्य देवेंद्रकीर्ति हुए । आप ने कडतासाह के पुत्र की प्रार्थना पर अकृत्रिम चैत्यालय जयमाला की रचना संवत् १८४० में की [ ले. १८६ ] । आप ने शक १७०६ में नन्दीश्वर पूजा और अकृत्रिम चैत्यपूजा की रचना की [ ले. १८७-८८ ]। आप के पिता पायापा और माता नेमाका तौलव देश के लवनपुर में रहते थे । अन्त समय शिरड ग्राम में रहते हुए आपने दिगम्बर मुद्रा धारण की थी ले. १९०] । आप का स्वर्गवास संवत् १८५० की कार्तिक कृष्ण १० को हुआ ( ले. १८९ )। आप के प्रमुख शिष्य महतिसागर थे । आपकी मराठी रचनाओंका एक संग्रह ' महति काव्यकुंज' नाम से प्रकाशित हो चुका है । आप ने रिद्धिपुर में शक १७२३ की भाद्रपद शुक्ल ५ को पुतळसंघवी के आग्रह पर रविवार व्रत कथा लिखी तथा शक १७३२ की माघ कृष्ण १४ को आदिनाथ पंचकल्याणिक कथाकी रचना पूर्ण की (ले. १९१-९२ ) । २९ स्थानिक अनुश्रुति से पता चलता है कि देवेंद्रकीर्ति के बाद भ. पद्मनन्दि पट्टाधीश हुए । सिद्धक्षेत्र मुक्तागिरि की वन्दना करते हुए अपघात से इन की मृत्यु हुई । इन की समाधि मुक्तागिरि के पास ही खरपी नामक गांव में है। इन ने संवत् १८७९ में ही कालुराम नामक शिष्यका पट्टाभिषेक कर उन का नाम देवेन्द्रकीर्ति रखा था। देवेन्द्रकीर्ति कोई साठ वर्ष पट्टाधीश रहे । नागपुर, विदर्भ और मसठवाडाकी बघेरवाल, खंडेलवाल, परवार, नेवी, सैतवाल आदि सभी जैन जातियों के प्रमुख व्यक्तियोंसे आपका सम्पर्क रहा । नागपुर, रामटेक, कारंजा आदि स्थानोंमें आप के द्वारा विशाल मूर्तियों की स्थापना हुई थी। तेरापंथी सम्प्रदाय के क्षुल्लक धर्मदासजी अमरावती में आप से मिल कर बडे प्रभावित हुए । बाद में उनने सम्यग्ज्ञानदीपिका आदि आध्यात्मिक ग्रन्थों का निर्माण किया । देवेन्द्रकीर्ति ने संवत् १९३६ में रुखबदास नामक शिष्यका पट्टाभिषेक कर उन का नाम रत्नकीर्ति रखा था । इस के कोई ५ वर्ष बाद संवत् १९४१ में उन का स्वर्गवास हुआ । भ. रत्नकीर्ति ने गुरु की समाधि अच्छी तरह निर्माण कर उसके चारों ओर बगीचा लगाने की व्यवस्था की थी। रत्नकीर्तिका स्वर्गवास अचलपुर में संवत् १९५३ में हुआ। उन के कोई चार वर्ष बाद देवेन्द्रकीर्ति For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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