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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६० भट्टारक संप्रदाय [१५१ -- श्रीशांतिनाथस्य गृहे गुणाढ्यं जीयात्सुपूज्या गुणधामसुद्धा । इति भ. देवेंद्रकीर्तिकृत विषापहारस्तोत्रपूजा संपूर्णा ।। (ना. ७४) लेखांक १५२ - नासिक त्रिंबक गाम समीप महागजपंथ धराधर सारं । ध्यान बले वसु कोडि मुनीस गया जिह कर्मजिती भवपारं ॥ षोडश पन्नास पोस समुज्ज्वल बीज तिथी दिननायकवारं । · देवेंद्रकीर्ति नमे जिनरत्नचंद्रांबुधिरूपविद्यार्थी संवारं ।। (म. ७८) लेखांक १५३ - भागलदेस महेंद्रपुरी तस संनिधि मांगि गिरी तुंगि तुंगं । हलधर माधव कोडि तपोधन मुक्ति बरी करी कल्मषभंग ॥ शून्यशरान्वितषड्विधु पौष त्रयोदश शुक्ल गुरूदिन चंगं । देवेंद्रकीर्ति नमे जिनरत्नचंद्रांबुधिरूपवीरादिकसंग ॥ ( उपर्युक्त ) लेखांक १५४ - णायकुमार चरिउ संवत १७८५ वर्षे शाके १६५८ कीलक नाम संवत्सरे माघमासि प्रतिपत्तिथौ सोमधूसे नवमससंपदे सूरति बंदिरे वासुपूज्यचैत्यालये गिरचारयात्रागमनसमये भ. श्रीधरमचंद्रपट्टधारिदेवेंद्रकीर्तिभ्यः रामजी संघाधिप पुत्र आणंदनाना हूंबढ श्रावकेण दत्तमिदं पुस्तकम् ॥ (प्रस्तावना पृ. १३, कारंजा जैन सीरीज ) लेखांक १५५ - देश खडकमे धूलिय गाम युगादि जिनाधिप पुण्यपवित्रा। जाकी दिगंतर विश्रुतउज्वलकीर्ति जपे नर देव कलत्रं ॥ रूप शरान्वित षोडश वैशाख कृष्ण त्रयोदशि चंद्रमपुत्रं । देवेंद्रकीर्ति नमे जिनरत्नचंद्रांबुधि रूपजी वीरजी छात्रं ॥ (म. ७८ ) For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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