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________________ भगवती सूत्र की सूक्तिर्या उनहत्तर १७. सिद्धान्तानुकूल प्रवृत्ति करने वाला साधक ऐपिथिक (अल्पकालिक) क्रिया का वध करता है । सिद्धान्त के प्रतिकूल प्रवृत्ति करने वाला साप रायिक (चिरकालिक) क्रिया का वध करता है । १८. जीव गाग्वत भी हैं अगाग्वत भी । द्रव्यदृष्टि (मूल स्वस्प) मे शाश्वत हैं, तथा भावदृष्टि (मनुप्यादि पर्याय) से अगाश्वत । भोग-समयं होते हुए भी जो भोगो का परित्याग करता है वह कर्मों की महान् निर्जरा करता है, उसे मुक्तिरूप महाफन प्राप्त होता है । __ २० आत्मा की दृष्टि से हाथी और कु युआ-दोनो मे आत्मा एक समान है । २१ मच्चे मावक जीवन को आगा और मृत्यु के भय से सर्वथा मुक्त होते हैं। २२ एक त्रम जीव की हिंसा करता हुआ आत्मा तत्सवधित अनेक जीवो की हिंसा करता है। __ २३ एक हिसक ऋपि का हत्या करने वाला एक प्रकार से अनत जीवो की हिमा करने वाला होता है । ___ २४ अधार्मिक आत्माओ का मोते रहना अच्छा है और धर्मनिष्ठ आत्माओ का जागते रहना। २५ वर्मनिष्ठ आत्माओ का वलवान होना अच्छा है और धर्महीन आत्माओ का दुर्वल रहना। ___ २६ इस विराट् विश्व मे परमाणु जितना भी ऐसा कोई प्रदेश नहीं है, जहाँ यह जीव न जन्मा हो, न मरा हो ।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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