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________________ योग्य बनाना हो तो हमे अव समन्वय-नीति को स्वीकार करना ही होगा । समन्वय नोति ही आज का युगधर्म है । भारत मे तीन दर्शनो की प्रधानता है । सनातनी संस्कृति के तीन दर्शनो का प्रभुत्व है (१) वैदिक अथवा श्रति स्मृति पुराणोक्त-दर्शन ( २ ) जैन दर्शन (३) और बौद्ध दर्शन । अिन तीनो दर्शनो ने भक्तियोग को कुछ न कुछ स्वीकार किया है । ये सब मिलकर भारतीय जीवन-दर्शन होता है । जिसी युगानुकूल नीति का स्वीकार जैन मुनि उपाध्याय अमर मुनि ने पूरे हृदय से किया है | और अभी-अभी उन्होने अिन तीनो दर्शनो मे से महत्व के और सुन्दर सुभाषित चुनकर 'सूक्ति त्रिवेणी तैयार की है। अमर मुनि जी ने आज तक बहुत महत्व का साहित्य दिया है, उस मे यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्व की वृद्धि कर रहा है । तुलनात्मक अध्ययन से दृष्टि विशाल होती है और तत्व-निष्ठा दृढ होती है । 'सूक्ति त्रिवेणी' ग्रथ यह काम पूरी योग्यता से सम्पन्न करेगा । मैं संस्कृति उपासको को पूरे आग्रह से प्रार्थना करूंगा कि समय-समय पर जिस त्रिवेणी मे डुबकी लगाकर सास्कृतिक पुण्य का अर्जन करे । श्री अमर मुनिजी से भी मैं प्रार्थना करूंगा कि अिस ग्रथ के रूप मे हिन्दी विभाग को उस की भाषा सामान्यजनसुलभ बनाकर अलग ग्रंथ के रूप मे प्रकाशित करें। ताकि भारत की विशाल जनता भी जिससे पूरा लाभ उठावे । ऐसे सुलभ हिन्दी सस्करणो से पाठको को मूल सूक्ति त्रिवेणी की ओर जाने की स्वाभाविक प्रेरणा होगी। मैं फिर से अिस युगानुकूल प्रवृत्ति का और उसके प्रवर्तको का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ । • काका कालेलकर ****** सूक्ति त्रिवेणी के प्रकाशन पर मुझे प्रसन्नता है, यह एक सुन्दर पुस्तक है, इससे समाज को लाभ पहुँचेगा और राष्ट्र को सास्कृतिक एकता
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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