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________________ ऋग्वेद की सूक्तिया उनहत्तर ३०५. मिलकर चलो, मिलकर बोलो, मिलकर सब एक दूसरे के विचारो को जानो। जैसे कि प्राचीन काल के देव (दिव्य व्यक्ति-ज्ञानीजन) अपने प्राप्त कर्तव्य कम मिलकर करते थे, वैसे ही तुम भी मिलकर अपने प्राप्त कर्तव्य करते रहो। ३०६ आप सब का विचार समान (एकसा) हो, आप सब की सभा सब के लिए समान हो । आप सबका मन समान हो और इन सबका चित्त भी आप सब के साथ समान (समभावसहित) हो। ३०७. आप सब का संकल्प एक हो, आप सब के अन्तःकरण एक हो । आप सब का मन (चिन्तन) समान हो, ताकि आप सब अच्छी तरह मिलजुल कर एक साथ कार्य करें।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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