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________________ सूक्ति कण ७. ८. एक सौ सैंतीस मन की एकागता एवं समाधि मे ही प्राणी सद्गति प्राप्त करते है । प्रसन्न चित्त से दिया गया अल्पदान भी, अल्प नही होता है । ६ पुण्यशाली आत्मा जहां कहीं भी जाता है, सर्वत्र सफलता एव सुख प्राप्त करता है । १०. जान-बूझ कर झूठ नही वोलना चाहिए और दूसरो की बुराई (विनाश ) का विचार नही करना चाहिए । ११. सज्जन की संगति सुग्वकर होती है । १२. ऊँचाई पर वर्षा हुआ जल जिस प्रकार वहकर अपने आप निचाई की ओर आ जाता है, उसी प्रकार इस जन्म में दिया हुआ दान अगले जन्म में फलदायी होता है । १३. ढेर सारे अन्न और जल से भी, मरा हुआ वैल खड़ा नही हो सकता । १४. जो अदानशील ( दान देने से कतराते) हैं, वे - 'परलोक मे दान का फल मिलता है' - इस बात पर विश्वास नही करते । १५. मित्रद्रोह करना, पाप ( बुरा ) है । - १६. राजधर्म कहता है कि जिस वृक्ष की छाया मे बैठे या सोए, यदि कोई महत्वपूर्ण कार्य सिद्ध होता हो, तो उसको भी जड़ से उखाड देना चाहिए | १७. सत्पुरुषो ने कृतज्ञता की महिमा गाई है ।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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