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________________ आचारांग को सूक्तियां २६ तत्वद्रप्टा को किसी के उपदेश की अपेक्षा नही है । २७. मृत्यु के लिए अकाल वक्त वेवक्त जैसा कुछ नहीं है । १८ मव प्राणियो को अपनी जि दगी प्यारी है। मुन्ब मब को बन्छा लगता है और दु व बुग। वध मव को अप्रिय है, और जीवन प्रिय । मव प्रागी जीना चाहते है, कुछ भी हो, सब को जीवन प्रिय है। बत. किमी भी प्राणी की हिमा न कगे। २६ प्रत्येक व्यक्ति का मुग्व दु ख अपना अपना है । ३० हे वीर पुस्प । आगा-तृष्णा और स्वच्छन्दता का त्याग कर । तू स्वय ही इन काटो को मन मे रखकर दुखी हो रहा है । ३१. तुम जिन (भोगो या वस्तुओ) मे मुख की आगा रखते हो, वस्तुत वे मुख के हेतु नही हैं। ३२ बुद्धिमान साधक को अपनी साधना मे प्रमाद नही करना चाहिए । ३३ जो अपनी साधना मे उद्विग्न नही होता है, वही वीर माधक प्रशसित होता है। ३४ मिलने पर गर्व न करे । न मिलने पर शोक न करे । ३५ अधिक मिलने पर भी सग्रह न करे । परिग्रह-वृत्ति मे अपने को दूर रखे ।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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