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________________ भाष्यसाहित्य की सूक्तिया दो सो तीन १२२. जो अजगर के समान सोया रहता है, उसका अमृत-स्वरूप श्रुत (ज्ञान) नष्ट हो जाता है, और अमृत स्वरूप श्रुत के नष्ट हो जाने पर व्यक्ति एक तरह से निरा बैल हो जाता है । १२३. धार्मिक व्यक्तियों का जागते रहना अच्छा है और अधार्मिक जनो का सोते रहना । १२४. आलस्य के साथ सुख का, निद्रा के साथ विद्या का, ममत्व के साथ वैराग्य का और आरभ = हिंसा के साथ दयालुता का कोई मेल नही है । १२५. किसी के प्रति निर्दयता का भाव रखना वस्तुत दुखदायी है । १२६. जो गुण, दोष का कारण है, वह वस्तुत. गुण होते हुए भी दोप हो है । और वह दोप भी गुण है, जिसका कि परिणाम सुदर है, अर्थात् जो गुणका कारण है | १२७. जो प्रीति से शून्य है - वह 'पिशुन' है । १२८. जो व्यक्ति दुर्विनीत है, उसे सदाचार की शिक्षा नही देना चाहिए । भला जिसके हाथ पैर कटे हुए है, उसे कंकण और कुडल आदि अलकार क्या दिए जायँ ? १२६. ज्ञान मनुष्य को मृदु वनाता है, किंतु कुछ मनुष्य उससे भी मदोद्धत होकर अधजलगगरी की भाँति छलकने लग जाते हैं, उन्हें अमृत स्वरूप औषधि भी विप वन जाती है । १३०. देश, काल और व्यक्ति को समझ कर ही गुप्त रहस्य प्रकट करना चाहिए ।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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