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________________ पर लोहनी सूक्ति त्रिवेणी ५. नुल्लमा अवरो, परिणामबसेगा होनि रणागत्त। वह भा० ४६७४ ५६ कागं परमरितावो, यमागहेतु गिहि पत्तो। प्रान-परहिन को पृग, इच्छिन्नर दुगले स खतु ।। ~ बृह० भा० ५१०८ विगवाहीया विजजा, देनि फलं दह परे य लोगम्मि । न फलति वियहीणा, मस्सारिण व तोयहीगाइ ॥ - वृह० भा० ५२०३ ५८ माहितो न जारगति, हिनहिं हित पि भातो। -वृह भा० ५२२८ __ ५६. निधिप्पसह गुह । -यह० मा० ५७१७ ६०. पगामिम हि चिनार, विचित्ताईखणे खरगे। उपानि नियनेय, वसेव सज्जगो जगे। -यह भा० ५७१६ ११. जाति प्रावो, विगावलि विदिनो मतो। या नजइ पानी, एवं मो लिममाणो उ ।। -यह भा० ६०६२ ६.. frif . दिवं अनुतो नयो उ मागे। ___ -स्यवहारमाय पोटिका ८७ ६ . 1, याममुदाहरे । -~~य ना पीर ७६ -~~-44s - मी
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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