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________________ भाष्यसाहित्य को सूक्तियो एक सौ तिरासी २०, धार्मिक जनो मे परस्पर वात्सल्य भाव की कमी होने पर सम्यग्दर्शन की हानि होती है। २६ अकपाय (वीतरागता) ही चारित्र है। अत कपायभाव रखने वाला सयमी नही होता । ३० जो यतनारहित है, उसके लिए गुण भी दोष बन जाते हैं। ३१. स्वच्छद आचरण करने वाली नारी अपने दोनो कुलो (पितृकुल व श्वसुर कुल) को वैसे ही नष्ट कर देती है, जैसे कि स्वच्छद वहती हुई नदी अपने दोनो कूलो (तटो) को। ३२. कहाँ अधा और कहां पथप्रदर्शक ? (अधा और मार्गदर्शक, यह कैसा मेल ?) ३३. यह वसु धरा वीरभोग्या है । ३४. सूत्र, अर्थ (व्याख्या) को छोड़कर नहीं चलता है । ३५. जिस चन्द्र की ज्योत्स्ना द्वारा कुमुद विकसित होते हैं, हन्त । वे ही कृतघ्न होकर अपने सौन्दर्य का प्रदर्शन करते हुए उसी चन्द्रमा का उपहास करने लग जाते हैं । ३६. जैसे-जैसे मन, वचन, काया के योग (सघर्ष) अल्पतर होते जाते हैं, वैसे वैसे वध भी अल्पतर होता जाता है । योगचक्र का पूर्णत निरोध होने पर आत्मा मे वध का सर्वथा अभाव हो जाता है, जैसे कि समुद्र मे रहे हए अच्छिद्र जलयान में जलागमन का अभाव होता है। ३७. सयमी साधक के द्वारा कभी हिंसा हो भी जाय तो वह द्रव्य हिसा होती है, भाव हिंसा नही । कितु जो असयमी है, वह जीवन मे कभी किसी का वध न करने पर भी, भावरूप से सतत हिंसा करता रहता है।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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