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________________ एक सौ अस्सी सूक्ति त्रिवेणी १८. जो उ परं कंपतं, दठ्ठण न कपए कढिरणभावो। एसो उ निरणुकंपो, अणु पच्छाभावजोएणं ॥ -बृह° भा० १३२० १९. अप्पाहारस्स न इंदियाई, विसएस संपत्त ति । नेव किलम्मइ तवसा, रसिएसु न सज्जए यावि॥ -बृह० भा० १३३१ २०. त तु न विज्जइ सज्झं, ज धिइमतो न साहेइ । -बृह० भा० १३५७ २१. धंतं पि दुद्धकंखी, न लभइ दुद्ध अधेणूतो। -वृह भा० १९४४ २२. सीह पालेइ गुहा, अविहाडं तेण सा महिड्ढीया । तस्स पुण जोव्वणम्मि, पयोषण किं गिरिगुहाए? -वृह० भा० २११४ २३ न य सो भावो विज्जइ, अदोसव जो अनिययस्स । -बृह° भा० २१३८ २४. वालेण य न छलिज्जइ, ओसहहत्थो वि किं गाहो? -बृह० भा० २१६० २५. उदगघडे वि करगए, किमोगमादीवित न उज्जलइ । अइइद्धो वि न सक्कइ विनिव्ववेउ कुडजलेणं ॥ -बृह० भा० २१६१ २६. चूयफलदोसदरिसी, चूयच्छायपि वज्जेई । -बृह० भा० २१६६ २७ छाएउ च पभाय, न वि सक्का पडसएणावि। -बृह० भा० २२६६
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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