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________________ भाष्यसाहित्य की सूक्तियां १ गुणसुठ्ठियस्स वयण, घयपरिसित्त व्व पावो भाइ । गुणहीणस्स न सोहइ, नेहविहूणो जह पईवो ॥ बृहत्कल्पभाष्य २४५ २. को कल्लाणं निच्छइ । -बृह० भा० २४७ ३ जो उत्तमेहिं पहनो, मग्गो सो दुग्गमो न सेसाणं । -बृह० भा० २४६ ४. जावइया उस्सग्गा, तावइया चेव हुति अववाया। जावइया अववाया, उस्सग्गा तत्तिया चेव ।। - - -बृह० भा० ३२२' । ५. अबत्तणेण जीहाइ कूइया होइ खीरमुदगम्मि । हंसो मोत्त ण जलं, पापियइ पय तह सुसीसो॥ -बृह० भा० ३४७ ६ मसगो व्व तुदं जच्चाइएहिं निच्छुब्भइ कुसीसो वि। बृह० भा० ३५० ७ अदागसमो साहू। -वृह० भा० ८१२
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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