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________________ १. जिनवाणी (ग्रग - साहित्य) का सार क्या है ? 'आचार' सार है । २ ३. समग्र मानवजाति एक है । श्राचार्य भद्रबाहु की सूक्तियां प्ररूपणा का सार है --आचरण । आचरण का सार (अन्तिमफल ) है - निर्वाण | ४ नारको की दिशा, अधोदिशा है और देवताओ की दिशा ऊर्ध्व दिशा । ( यदि अध्यात्मदृष्टि से कहा जाए तो अधोमुखी विचार नारक के प्रतीक है और ऊर्ध्वमुखी विचार देवत्व के ) । ५. कुछ लोग अपने सुख की खोज मे दूसरो को दुख पहुँचा देते है । و ६ भाव-दृष्टि से ससार मे असंयम हो सबसे बड़ा शस्त्र है | = जिसकी मति, काम (वासना) से मुक्त है, वह शीघ्र ही ससार से मुक्त हो जाता है । वस्तृतः काम की वृत्ति ही चारित्रमोह (चरित्र - मूढ़ता ) हैं ।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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