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________________ पिच्यासी दशवकालिक को सूक्तिया ८. कामनाओ को दूर करना ही दुःखो को दूर करना है । ६. वमन किए हुए (त्यक्त विषयो) को फिर से पीना (पाना) चाहते हो ? इससे तो तुम्हारा मर जाना अच्छा है। १० चलना, खडा होना, बैठना, सोना, भोजन करना और बोलना आदि प्रवृनियों यतनापूर्वक करते हुए साधक को पाप कर्म का वन्ध नही होता। ११. पहले ज्ञान होना चाहिए और फिर तदनुसार दया-अर्थात् आचरण । १२ अनानी मात्मा क्या करेगा? वह पुण्य और पाप को कैसे जान पायेगा? १३. जो श्रेय (हितकर) हो, उसी का आचरण करना चाहिए । १४. जो न जीव (चैतन्य) को जानता है, और न अजीव (जड) को, वह सयम को कैसे जान पाएगा? १५ मार्ग मे जल्दी जल्दी-तावड तोवड़ नही चलना चाहिए । १६ मार्ग मे हंसते हुए नही चलना चाहिए । १७. जहां भी कही क्लेश की सभावना हो, उस स्थान से दूर रहना चाहिए । ___ १८ किसी भी वस्तु को ललचाई आंखो से (आसक्ति पूर्वक) न देखे । १६, आँखें फाड़ते हुए, (घूरते हुए) नही देखना चाहिए ।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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