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________________ प्रश्नव्याकरण सूत्र की मूक्तिया पिचहत्तर ८. अदत्तादान (चोरी) अपयश करने वाला अनार्य कर्म है । यह सभी भले आदमियो द्वारा सदैव निंदनीय है । ६. अच्छे से अच्छे सुखोपभोग करने वाले देवता और चक्रवर्ती आदि भी अन्त मे काम भोगो से अतृप्त ही मृत्यु को प्राप्त होते है । १० विषयासक्त इस लोक मे भी नष्ट होते हैं और पर लोक मे भी। ११. परिग्रह स्प वृक्ष के स्कन्ध अर्थात् तने है-लोभ, बनेग और कपाय । चिता स्पी सैकडो ही मघन और विस्तीर्ण उमकी शाखाएं है। १२. देवता और इन्द्र भी न (भोगो से) कभी तृप्त होते है और न सन्तुष्ट । १३. समूचे संसार मे परिग्रह के समान प्राणियो के लिए दूसरा कोई जाल एवं वन्वन नही है। १४ अहिंसा, अस और स्थावर ( चर-अचर ) सब प्राणियो का कुशल क्षेम करने वाली है। १५. विश्व के किसी भी प्राणो की न अवहेलना करनी चाहिए, और न निन्दा । १६. मन से कभी भी बुरा नही सोचना चाहिए । वचन से कभी भी बुरा नही बोलना चाहिए । १७. जैसे भयाक्रान्त के लिए शरण की प्राप्ति हितकर है, प्राणियो के लिए वैसे ही, अपितु इस मे भी विशिष्तर भगवती अहिंसा हितकर है। १८ सत्य-समस्त भावो-विषयो का प्रकाश करने वाला है। १६ सत्य ही भगवान् है ।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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