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________________ ६८ मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र (१८) Calcutta 9-1-1926 परम पूज्य आचार्य महाराज श्रीमान जिनविजयजी महाराज की पवित्र सेवा में पूरणचन्द नाहर की सविनय वंदना अवधारिएगा अपरंच यहाँ कुशल है । आपकी शरीर सम्बन्धी सुख शान्ति हमेशा चाहते हैं । विशेष पूना से सा. चिमनलाल भाई ने पट्टावली के फर्मों की रसीद मुझे भेजी है । माल अभी तक पहुँचा नही है । पहुँचने से आपको लिखेंगे । और इनके आगे के फर्में छपवाने के लिये वहां आपको अनुकूल हो तो वहाँ प्रबन्ध कर लीजियेगा । खर्च लगेगा सो हम देवेंगे । और पुस्तक जिसमे जल्दी बाहर पड़े इसका आप पूरा ख्याल रखियेगा | याने जहाँ तक छप चुकी है उसके वाद जो जो विषय उसमे और छपवाना हो सो छपकर भूमिका मे आपका ऐतिहासिक दृष्टि से जैसा लिखने का विचार हो सो अभी से लिखना आरम्भ कर दीजियेगा कि जल्दी तैयार होकर मूल छपे वाद साथ-साथ भूमिका, सूचीपत्र, टाइटल पेज वगैरह छप जाय ऐसा प्रवन्ध होना चाहिये । आगे यहाँ परसो से राजगिरी केस का कमीशन से इजहार आरम्भ होगा । इस कारण हमको अवकाश नही है । पुस्तकें बन्ध कर तैयार थी, आपकी आज्ञानुसार समस्त पुस्तकें भेजते हैं । फक्त सिंहली कच्चायन वर्णन के कुछ पत्र कम थे । इस कारण भेजा नही । पुस्तके जहाँ तक बना ठीक से बन्धवा कर भेजते हैं । आशा है पसन्द आयेंगी । कुल पुस्तके आगे जो भेजी है और आज बक्स नग ३ में जो भेजी गई जिसकी पार्सल की रसीद इसके साथ भेजते है स्टेशन से बक्स खलास करा कर सभी की लिस्ट करा लीजिएगा । हिसाब वगैरह दूसरे पत्र मे भेजेंगे । उस समय लिस्ट से पुस्तकें मिल जायगी । पार्सल का महसूल वहाँ देने का है | यहाँ आपके आगे की ली हुई और पीछे के आर्डर की कोई पुस्तक नही रही है । बंगीय साहित्य परिषद से भाषा तत्त्व, जयदेव चरित्र
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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