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________________ मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र प्रवन्ध करिएगा और जो पन्ने यहाँ से साथ ले गये हैं उनकी भी प्रेस कापी बनवाने का स्मरण रखियेगा और तैयार होने पर वे पन्ने भी वापिस भेजियेगा । पट्टावली के जो छह सात फमें छप चुके हैं उनके आगे के फर्मे जो मैंने यहां छपवाने का कहा था यदि आपको वहाँ छपवाने में हर तरह से आराम हो तो आगे के फरमे भी वही छपवाने का प्रबन्ध कर लीजियेगा, हमें उजर नही है। आगे आपने आपकी खरीदी हुई पुस्तकें भेजने को लिखा लेकिन उनमे से कागज के जिल्द की पुस्तकें नग २४ तथा बंगीय साहित्य परिषद से जो पुरानी फाइल आई है वे सब यहा आपकी आज्ञानुसार दफ्तरी को जिल्द बंधवाने को दिया है सो उनके आने मे ७, ८ दिन की देरी है, आने से आपकी सब पुस्तकें शीघ्र भेजी जावेंगी। मागे आप जो पुस्तकें चुनकर रख गये हैं उनकी लिस्ट भेजी नही थी सो इसके साथ भेजते हैं, देखकर इनमे से जो पसन्द हो कृपया सूचित कीजिएगा सो वे भी भेज दी जावेगी और जो सेवा हो सो लिखियेगा। ज्यादा शुभम् मि. पोस बदि ८ ।। द : पूरणचन्द की वन्दना (१७) 22-12-1925 श्रीमान आचार्य महाराज साहब श्री जिनविजयजी योग्य पूरणचन्द नाहर की सविनय बन्दना अवधारियेगा. यहाँ कुशल है आपकी शरीर सम्बन्धी सुख शांति हमेशा चाहते हैं । अपरच पत्र आपका ता. १७ का पहुंचा तथा आपकी भेजी हुई तीर्थ कल्प की प्रति मिली मापने "प्रवचन • परीक्षा" की पुस्तक के भेजने के विषय मे लिखा है, लेकिन वह प्रति सेठ मानन्दजी कल्याणजी के मारफत अहमदाबाद के डेला के उपाश्रय से हमारे पास आ गई है। इसलिये अब आप उपरोक्त प्रति भिजवाने का कष्ट न उठावें । जैन हितैषी का १३ वा भाग मिला है । दूसरा e
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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