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________________ श्री केशरी चन्दजी भडारी के पत्र उत्तर आपके विहार से पहले कृपाकर भेजें व विहार के बाद आपका पता लिखते रहे। आपका नम्र केशरी चन्द भडारी इन्दौर ९-४-१६ ___ श्री मुनि श्री जिन विजय जी महाराज मुकाम पूना इन्दौर से केसरी चन्द भंडारी का यथा योग्य वदन प्रविष्ट होवे । श्रीमान का ता० ६-४-१६ का कृपा पत्र पहुँचा, पढकर जो आनन्द हुआ वह मैं शब्दो मे व्यक्त करने में असमर्थ हूँ, जो कार्य करने के वास्ते मैं बरसो से विचार कर रहा था, परन्तु विद्या बल के अभाव से व प्रतिकूल संयोगो के कारण मैं उस बारे में कुछ भी नही कर सका। वे ही कार्य आपने करने का बीडा उठाया है । यह जानकर मुझे बड़ा ही सतोष होता है। संसार के कार्यों को छोड़कर धर्म व समाज सेवा के कार्यो मे लगकर मैं अपना जीवन सफल करूं ऐसी तीव्र भावना मेरी कई वर्षों से है, परन्तु क्या किया जाये। अन्तराय कर्म के उदय के कारण व मनोबल की कोताई से मैं आज तक कुछ भी नहीं कर सका। खासकर गत पांच छह महिनो से तो यह विचार इतने प्रबल हो गये हैं कि एक दिन भी ऐसा व्यतीत नहीं होता कि इस विषय का मैं चिन्तन नही करता हूँ और मनोवल की खामी को न धिक्कारता होऊँ । मेरी गृह स्थिति भी ऐसी अनुकूल है कि यदि मैं सांसारिक कार्यों को छोड़ भी हूँ तो मुझे कोई तरह की आपत्ति नही, परन्तु संसार का मोह नही छूटता । इस तरह मुझे बार बार खेद होता है । खैर, संसार में फंसा
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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