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________________ इन्दौर निवासो श्री केशरी चन्दजी मंडारी के पत्र (१) इन्दौर (मालवा) सरकार बाड़े के सामने ५-११-१९१८ श्रीमान मुनि श्री जिन विषय जी महाराज साव पूना इन्दौर से केसरी चन्द भंडारी का यथा योग्य वंदन प्रविष्ट होय । यह जानकर मुझे अत्यन्त हर्ष होता है कि आपको इतिहास से बड़ा ही शौक है । व प्राचीन शोधो के विषय मे आप बडी ही दिलचस्पी बताते हैं । ऐसे उत्साही मुनि शायद ही कोई दूसरे नजर पावेंगे। आपका प्राचीन शिलालेख प्रथम भाग पढ़ कर चित्त बहुत ही प्रसन्न हुआ। अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन आदि भाषा मे ऐसे बहुत ग्रंथ हैं। परन्तु उनकी कीमत बहुत जादे होने से व परकीय भाषा मे लिखे होने से वैसे ही वे दुमिल होने से सर्वसाधारण को वे अप्राप्य हैं व इस कारण ऐसे महत्वपूर्ण विषयों से वे वंचित रहते हैं। परन्तु आपने जो सग्रह माला निकालनी शुरू की है उससे ऐसे ग्रय की अप्राप्यता बहुत अश दूर हुई है। इस पर आपका जितना उपकार माना जाय उतना कम होगा। जनों में प्राचीन शोध खोज सम्बन्धी एक भी मासिक नहीं है वास्तव में ऐसे मासिक चलाने के वास्ते जैन सामग्री बहुत है। बबई एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता सोसायटी इत्यादि अनेक लाइब्रेरियां हैं, वैसे ही इंगलैण्ड, इटली आदि शहरो की लाइब्रेरियो में अनेक ग्रंथ हैं
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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