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________________ ३० मेरे दिवगत मित्रो के कुछ पत्र पाता । और यही कारण है कि निश्चित रूप से आपको सहायता नही पहुँचा रहा हूँ | चित्तौड़गढ़ का चित्र एक कागज पर छपाने से किफायत रहा । आजकल कागज का दाम और छपाई दोनों बढ़ गये है | कृपा कर फोटो का आलबम सब भिजवादें । मुझको शीघ्र एक मित्र द्वारा उन्हे विलायत भेजना है । भगवान दीन जी छूट गये है । अभी देहली में मिले थे अच्छे हैं । अमेरिका जाने का इरादा है । ठीक है पत्र को अभी ग्रन्थ के रूप मे ही प्रकट करें। बिना पत्र देखे लोग ग्राहक नही बनते। मैं सदा प्रयत्न करता रहता हूँ । पत्र अग्रेजी कौनसी तारीख को प्रकट होगा सो लिखें । सेवक देवेन्द्र पत्र के कवर के लिये यह डिजाइन बनवा रहा हूँ बीच में श्री समेद शिखरजी का पार्श्वनाथ का टोक होगा । कृपाकर इस डिजाइन को देखकर अपनी राय लिखें और शीघ्र लोटा दें- देरी न करें । पत्रांक ७ ता : ११-६-२० श्री परम पूज्य महाराज जी, वन्दनामि - मैं इस समय प्रयाग मे हूँ । Dr. Satish Chandra का ब्लॉक मैं घर पहुँचते ही सेवा में भेज दूंगा, पूना मे किफायत से छप जायगा — मैं श्री तत्वार्थसूत्र आदि ग्रन्थो के तैयार कराने मे व्यग्र हो रहा हूँ । आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मेरा सारा समय श्री महावीर प्रभु के शासन सेवा में ही लग रहा है । जैनियों की अवस्था धीरे धीरे ठीक हो जाने पर ही प्रत्येक कामो मे सफलता होगी - ग्राहक बनने के
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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