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________________ १] मर दिवगत मिनाक कुछ पत्र। Mookim Niwas, Calcutta Ahore house Camp-Jodhpur, Marwar Dated 5-8-1919 श्री पूना शुभ स्थान श्री पत्री सर्वओपमा विराजमान सर्व गुण निधान धर्म उपकारी मुनिमहाराज श्री श्री जिनविजेजी महाराज की सेवा में राजकुमारसिंह की विनय पूर्वक वन्दना। आपकी कृपा से कुशल है आपके कृपा पत्र जोकि कलकत्ते से होकर आया और मुझे अभी मिला पढ़ कर निहायत खुशी हुई कि आपके शरीर को इष्टायक देव ने अच्छा कर दिया और अब बहुत काल तक आप उसका भोग देकर शासन में उद्योत करने को तत्पर हैं और कर रहे हैं। श्री मान् सेक्रेटरी साहब का भी पत्र मिला था। और उत्तर की पहुंच फिर आई सो मिली। मेरा इरादा तो शिमला से सीधे कलकत्ता जाने का था और वहा से श्री पर्युषण पर बम्बई पहुंचने को मैंने लिखा था मगर यहां मुझको कुछ इस्टेट के काम से पाना पड़ा और ३:४ दिन मे कलकत्ता जाऊगा । सो देर से शायद पर्युषण तो कलकत्ता में ही होवे । अगर यह हुआ तो भी दीवाली पहले वम्बई जाना अवश्य होगा और आपके दर्शनो को माना है । लेकिन एक पत्र आज मैंने अपनी दुकान वालो को बम्बई लिखा है कि जो रकम उस फण्ड में अपनी बाकी होवे तो देदो और सेठ लाल भाई से कहो कि भरी हुई रकम जल्दी वसूल करें या जरूरत होवे तो साथ रह कर वसूल करलो। रकम जल्दी जानी चाहिये और जब मैं बम्बई में गये साल मे था और ये टीप शुरु कराई थी उसी वक्त सिर्फ ८०००) वाकी रहे थे और उसी दिन रवाना हो गया था। लाल भाई तथा सेठ गुलावचन्द, देवीचन्द से बात हुई थी तो बोले थे बाकी भरा लेंगे। लेकिन ये थोडी सी रकम अभी तक योही बाकी रही है । सो वहां आवें जव या कलकत्ते की तरफ से भराली जावेगी। आप चिन्ता न करें
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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