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________________ मेरे दिवंगत मित्रो के कुछ पत्र their generous helping hand to this institute and announce their subscriptions to the conference office and kindly inform me at my head office so as to enable us to carry on negotiations with the institute authorities to make special provision for jain researches. Rajkumar Singh Bombay 1st August, 1918 [वाबू श्री राजकुमार सिंह जी को उनके पत्र नं० एक के जवाव मे जो कुछ मैंने लिखा ("उस पत्र की नकल तो मेरे पास नहीं रखी गई थी।") उसे पढकर उस विषय मे उन्होंने स्वयं ही कुछ विशेष प्रयत्न किया। और एक अग्रेजी में अपील लिखकर जैन-श्वेताम्बर कॉन्फ्रेस के मुख्य कार्यकर्तामों को तथा जैन समाज के अन्य धनिक सज्जनों को जो उनके विशेष परिचित थे उनको भेजी और स्वयं बम्बई में कुछ गृहस्थों से भी मिले उस समय वम्बई के जैन समाज में सबसे अधिक धनी कच्छ निवासी खेतसी० खी० ए० सी० माने जाते थे। वे जैन श्वेताम्बर कॉन्फ्रेंस के एक विशिष्ट अधिवेशन के अध्यक्ष भी वने थे। उनके सुपुत्र श्री हीरजी भाई बड़े उदार दिल के और नवीन विचारों के रखने वाले थे सेठ हीरजी भाई से वाबू श्री राजकुमार सिंह जी का घनिष्ठ मित्रता का सम्बन्ध था । प्रसंगवश बाबू राजकुमार सिंहजी हीरजी भाई से मिले और उनसे पूना के उक्त इंस्टीट्यूट मे अपने पिता के नाम से एक विशाल हॉल बना देने की बात कही। सेठ हीरजी भाई ने वावू श्री राजकुमार सिंह जी की बात को बड़े हर्ष के साथ मान लिया और २५०००/ रू० देना स्वीकार कर लिया। इस प्रसंग को लेकर वावू राजकुमार सिंह जी ने मुझे तुरन्त पत्र लिखा जो निम्न प्रकार है। पू० मुनिजी के हस्ताक्षर
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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