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________________ श्री राजकुमारसिंहजी के पत्र [३ सिंह की विनयपूर्वक वन्दना अवधारयेगा । यहाँ धर्म प्रसाद से कुशल है । आपके सुख साता चाहते है और कृपा पत्र उत्तर मे आया बडा आनन्द हुआ आप जैसे महात्मा अपने ज्ञान के सदुपयोग द्वारा धर्म उपकार कर रहे हैं और उपदेश आदेश द्वारा महान कार्यों की जड़ रोपन करा रहे हैं। मैंने आपके गुणानुवाद सुने, जबसे उत्कंठा है, दर्शन करूँ, मगर इस मोके का पता होते होते रह गया । फिर दिसम्बर तक आपका वही बिराजना है तो होना संभव है । मैं कल यहाँ से रवाना होकर काठियावाड १ : २ रियासत मे होकर फिर जोधपुर जाऊँगा, वहाँ भडारी जी समरथमल जी के यहाँ श्रावरण सुदी उतरते पहुँचकर पर्युशन पेस्तर कलकत्ते जाने का धारता हूँ । मगर यहाँ लाल बाग के ट्रस्ट सम्बन्धी श्री सघ मे और संघ सेठ मे कुछ वैमनस्य फैला है । कोर्ट मे केस है । उसके निबेड़े का मुझे सौंपा गया सो फैसला ठिकाने आया दीखा । इसी से कल रुक के आज जाने की आज्ञा मिली है । आशा है आज कार्य की सफलता हो जावेगी । आज रात को मुझे जाना होगा । कोन्फ्रेन्स के सुकृत भाण्डारकी खास जरूरी है । यहाँ मीटिंग हुई । उघाई का प्रबन्ध अच्छी रीति से हो रहा है । वालेन्टीयर मुकर्रर हुए हैं इसी प्रकार पूने में होने का उपदेश करियेगा । इससे सरल और उपयोगी आमदनी का रास्ता और नही दीखता । और जैन कुटुम्ब मे जन्म पाते ही सुकार्य मे भाग दिलाने वाला भी यही रास्ता है । और मैं पत्र लिखता था कि लाल बाग केस में लगना पड़ा। आज पूरा करके भेजता हूँ कल सध्या तक भारी धमाल रही और अन्त मे परिणाम सफलता का आने से बडा आनन्द हुआ लाल बाग का ट्रस्ट बन गया । दोनों मे मेल होके सारी शर्तें अच्छी रीति से दोनों से लिखा के दस्तखत हो गये। फिर मुझको मुखिया लोगो ने जाने से रोक दिया और कल सघ भेला होके उसमे सुनाके, पसार करके जाने देंगे। सो परसो गुरुवार को जाऊँगा । और श्री मंगसी तीर्थ की घटना वडी दुख दाई है । जैसी भावी थी वो बना । अब योही बैठना ठीक नही, इस वास्ते एक कमेटी
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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