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________________ मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र मेरे ऐसे मित्रो का समूह तो बहुत बड़ा रहा है। इनमें हिन्दी, गुजराती मराठी, बगाली भापा-भापी अनेक विद्वान है। इन भाषाओ.के लिखे गये ऐसे सैकड़ों पत्र है और अग्रेजी, जर्मन भाषा के भी अनेक हैं। कुछ सस्कृत में भी लिखे हुये हैं। मेरा विचार था कि अलग-अलग भाषा के पत्रों का अलग अलग संकलन किया जाय परन्तु जैसा कि ऊपर सूचित किया है वह अव इस जीवन मे शक्य नही दिखाई देता इसलिये प्रारम्भ में नमूने के तौर पर यह हिन्दी पत्रों का संकलन शुरू किया गया परन्तु वह भी इतना विशालं दिखाई देने लगा कि इस प्रकार के कोई सातसौ आठसौ पन्नो मे भी उसका समावेश होना सभव नही प्रतीत हुआ अत: यह एक छोटा सा सकलन ही अभी तो प्रकाशित किया जा रहा है....." ये पत्र जीवन के अतीत मे अधकाराच्छन्न एवं विस्मृतप्रायः स्मृतिचित्रो को आंखो के सामने प्रकाशवान करने के निमित्त दीपशिखा का काम करते है। इन पत्रों को पढ़ते समय उन दिवगत आत्माओ के साथ आत्मसाक्षात्कार का आभास हो जाता है और क्षणभर लगता है कि वह मित्र अभी भी वैसे ही जीवन्त है और अपने पत्र के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे है अत: उनको पत्र लिखकर अपने संवन्धो का सौहार्दपूर्ण स्मरण दिला देने की अन्तर मे इच्छा जग उठती है। परन्तु भान में आने पर यह इच्छा निद्रा के स्वप्न की तरह शून्य का प्रतिरूप बनकर पुनः मन मे ही विलीन हो जाती है । ये मित्र उस धाम में चले गये हैं जहा अब कोई पत्र नही पहुचेगा। उनसे साक्षात्कार करने के लिये उन्ही के मार्ग का अनुसरण करना ही अव इस जीवन की इति. कर्तव्यता है। मुनि जिनविजय सर्वोदय साधनाश्रम चन्देरिया (चित्तौड़गढ) ता० १४ मार्च १९७२ चेत्र कृष्णा १४, वि. स. २०२८
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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