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________________ स्व, स्वामी श्री सत्यदेवजी के कुछ पत्र १७१ C/o Post Master Nainital, U.P. 26.8,31 मित्रवर, ___मेरी इच्छा तुम्हारे पास आकर शाति निकेतन मे रहने की होरही है। विचार यह है कि अगला जाड़ा मार्च तक वही बिताऊ और साहित्यिक कार्य करूं। वहाँ जर्मन के अभ्यास की भी सुविधा होगी। मेरे पास पढ़ने लिखने वाला विद्यार्थी है। अब आपका छात्रावास है ही खर्च देकर भोजन मिल ही जायगा। _ 'तुम्हारी क्या राय है ? क्या रहने का स्थान दिलवानोगे ? उत्तर शीघ्र देना। मैं फिर प्रोग्राम-बनाऊँगा और लाहोर से पुस्तके अपने साथ लेता आऊँगा। अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक आ सकूगा। फिर छः मास स्वाध्याय होगा। उत्तर शीघ्र-- सस्नेह सत्यदेव परिव्राजक (९) 13, Bara Khamba Road, New Delhi. 23.6.32 मेरे प्यारे जिन विजयजी, मैं यह पत्र आपके पास भेज कर नम्र निवेदन करता हूँ कि इस अभागिन पर दया कर उसके आने का प्रवन्ध कर दीजिये। उसे आशा में लटकाए रखना पाप है। यहाँ उसके लिये कोई न कोई काम निकल ही आएगा। उसने बीमारी मे कैसी सवारतीपाश्री योर इसे स्मरण कर अपना कर्तव्य पालन करना है American-EBfdado, की मार्फत स्टीमर के किराये का प्रवन्ध करू लडेर ने करें
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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