SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र उराको विषय में किगी बड़े विद्वान का वैसा लक्ष्य नहीं गया जैसा जायसवालमी गा गया । उमगा बाद उन्होंने उग अगिलप का पुनर्वाचन तथा विशुद्ध पाठोबार पारने का बीड़ा उठाया । ग विषय में कोई १२ वर्ष तक उन्होंने अथक परिश्रम किया। उभीगा की तत्कालीन ब्रिटिम गवर्नमेन्ट द्वारा उस काम के लिये बहुत प्रयत्न किया पाराया। उनके प्रयत्न से ही पटना में बिहार एन्स मोरिंगा रिसर्च सोसायटी की गहमी रथापना हुई। गुप्रसि स्वर्गीय गहापणित राहुल गांपत्यायन को उनका गवरी वदा सहयोग रहा । घे परम में प्रायः उन्ही के पाग रक्षा करते थे। गण्यगिरि उत्ता अभिनित पुनर्वाचन एवं पाठीमार के विषय में उन गाथ गरा नगवर पत्र व्यवहार होता रहा । पिन पदों और पिन अक्षरो को पढ़ने में उनको यया कठिनाई होती थी वह गर्भ पत्र द्वारा लिगा करते थे और रवयं ने गुम एक बार पटना लापर इस पाठीवार को गहा कार्य में गायब होने गानिय बडे आग्रह पूर्वक थागन्धित पिाया श्रीर में पटना में उनका अतिथि भी बनने का सौभाग्य प्राप्त पार राका। गुण्डगिरि बाल पारधन अभिनय के अटिश पाली भीर अक्षरों का ठीगा परिशान प्राप्त करने के लिये उनकी जो गहरी लगन थी उसे भग्यकार में बहुत ही विस्मित हुमा था। उनके लिये गये न पत्रों में जनकी ऐसी लगन और निममता गा गाव अच्छी तरह व्यक्त हो रहा है। उनी मा श्री यिा भारत का प्राचीन इतिहास गय नंग रो लिया जाय और उगग अध्यावधि प्राप्त उन गी नई गोधी श्रीर प्रमाणों का उत्तम रंग में उपयोग किया जाय । इतिहाग जिपने में गेरा तथा रव० श्री राहुल गायत्यायन का विशेष सहयोग लेने का भी थायोजन किया था। जिसकी सूचना भी उन पन गुद्रित पत्रों में
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy