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________________ श्री काशीप्रसाद जायसवाल के पत्र १२६ पर पढने आया हूँ। देखते हैं कि बहुत कुछ सुधार की जरूरत है। वृहस्पति मित्र का नाम साफ है। पान तरिय सत सहसेहि है । ७५०००००) इमारत के वनाने का खर्च है उसके बाद-मुरिय कालेचोयठ सते (सती) यह Date है । पोयठ है, छेयठि नही। चोयठ चोसठ के लिए आता है कि नहीं। मुझे वाकीपुर के पते से लिखिये । रानी गुम्फा खारवेल का बनाया जान पड़ता है। अगजिन नहीं कलिंगजिन है, जिसे नन्द ले गया था। कृपा कर इस वाक्य का अर्थ लिखियेगा-"अरहतो पुरीणस सेतोहि कय्य ? निसीदीय यो पूजवेकहि राजभिति निचे नवतानि वृस-सतानि पूजाय हित गवसा खारवेल सिरिना जीव देहं योपरखिता"। क्या बैल और गायो की पूजा होती थी ? आपका काशीप्रसाद जायसवाल (४) पटना ताः २६-११-१९१७ अगहन वद १ श्री मुनिजी प्रणाम ! आप इधर कभी आवें तो मुझे दर्शन दे और मेरे यहाँ आतिथ्य स्वीकृत करें। __'पान तरिय' को यदि ७५ के अर्थ मे ले तो फिर चोयठ अगसतिक का क्या अर्थ हो सकता है ? मुझे यह वाक्य कुछ कण्ट दे रहा है। क्या ६४ किसी विशेप अर्थ मे जैन साहित्य मे आता है ? "चोयठ अगस । इति" ऐसा कुछ अर्थ दे ही नहीं सकता या चोयठम अगसतिक भी वे मानी है। कृपा करके कहियेगा कि चोयट का कोई विशेप अर्थ हो सकता है या नहीं। आपका का० प्र० जायसवाल
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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