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________________ १२४ मेरे दिवगत मित्रो के कुछ पत्र (२१) V. P. O. Rohera ( Via Abu Road St. of B B. & C. I. Ry . ) Sirohi State Rajputana Dated 11-7-1945 आचार्य श्री जिनविजय जी महाराज के चरण सरोज मे गौरीशकर हीराचन्द ओझा की प्रणति । अपरच | मैंने सुना है कि जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह नामक ग्रन्थ की पहली जिल्द आपने प्रकाशित की है, परन्तु खेद है कि आपने उसकी एक प्रति मुझे प्रदान करने की कृपा अब तक नही की । शीघ्र कृपा कर वह पुस्तक भेज दे । दूसरी बात आपको यह सूचित करना है कि भारतीय विद्या की गुजराती हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका दो वर्ष से मेरे पास नही आती । क्या उसका छपना बन्द हो गया है ? एक और कष्ट आपको यह देना है कि सिंधी ग्रथ माला की कोई प्रति इन दो वर्षों मे मेरे पास नही आई । अन्तिम प्रति जो मेरे पास आई है वह हेमचन्द्र का अग्रेजी चरित्र है । उसके बाद आई । जो पुस्तकें उसके बाद प्रकाशित हुई है, उन्हे करें । कोई प्रति नही भेजने की कृपा इस समय मेरी अवस्था ८० वर्ष की हो चुकी है और शरीर प्राय. अस्वस्थ रहता है । इस समय मैं जलवायु परिवर्तनार्थ अपने जन्म स्थान रौहेरा ग्राम में निवास कर रहा हूँ । यहा भी मेरे स्वास्थ्य मे विशेष सुधार नही दीख पडता । यह आपको सूचनार्थ लिखा है । आपका नम्र सेवक गौरीशकर हीराचन्द प्रोभा
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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