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________________ मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र बडे धनी मानी, विद्वान और समाज के अग्रगण्य पुरुप थे। इनका मारा परिवार मुर्शिदाबाद और कलकत्ता में बहुत प्रसिद्ध है। वर्तमान मे कलकत्ता के एक सुप्रसिद्ध कांग्रेसी अग्रगण्य पुरुप, जो चावू श्री विजयसिंह जी नाहर के नाम से प्रसिद्ध हैं ये इन्ही वावु श्री प्रणचन्द जी नाहर के एक सुपुत्र है। बाबू पूरणचन्दजी नाहर का पारिवारिक संबन्ध कलकत्ता निवासी ऐसे ही एक सुप्रसिद्ध जैन अग्रगण्य पुरुप स्वर्गीय वावधी वहादुरसिंहजी सीधी के परिवार के साथ था। ये श्री सीधी जी के मासियायी भाई थे । इनकी विशिष्ठ अभिरुचि जैन इतिहास, साहित्य कला आदि की ओर थी। यो ये हाई कोर्ट के वकील थे और सामाजिक नेता भी थे। मैंने पूना मे रहकर जिन साहित्यिक प्रवृत्तियों का कार्यारभ किया था उसमे प्रारम्भ ही से उनका पूरा सहयोग मिलता रहा । उसके बाद मैं जब अहमदाबाद के गुजरात विद्यापीठ के अन्तर्गत् गुजरात पुरातन्व मन्दिर के कार्य में मुख्य रूप से सलन हुआ तो उसमें भी इनका अनेक प्रकार से मुझे सहयोग मिलता रहा । वाद में मैं जव शान्ति निकेतन मे गुरुदेव रवीन्द्रनाथ के आमन्त्रण से विश्वभारती विद्यापीठ में जैन शिक्षापीठ का आचार्य बना, तव भी इनका सहयोग मुझे बराबर मिलता रहा । इनके साथ मेरी साहित्यिक प्रवृत्तियो का अनेक प्रकार से संबन्ध रहा। परस्पर इन विपयो में वो तक विचारो एवं पुस्तको प्रादि विपयों में आदान प्रदान का कार्य होता रहा। इनके जीवन के अन्त तक मेरा वैसा विशिष्ठ सम्बन्ध बना रहा। इनके विविध पत्रो के पढने से ये बातें ज्ञात हो सकेगी। ५-~-पत्र सग्रह में पाचवें स्थान पर स्वर्गीय महामहोपाध्याय राय ." वहादुर पण्डित गौरीशकर हीराचन्दजी ओझा के पत्रो का संग्रह है। श्री ओझा जी का परिचय देने की कोई आवश्यकता नहीं है । वे भारत के बहुत बडे विद्वान और राजस्थान के सर्वोत्तम इतिहासज्ञ के रूप में विश्वविख्यात हैं। उनके साथ मेरा कैसा घनिष्ट आत्मीय संवन्ध रहा
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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