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________________ ८० मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र नहीं है । परन्तु इधर बाबू लामचन्दजी मोतीचन्दजी का कारबार बंद होने और पूज्य बड़े भाई सा का अचानक स्वर्गवास हो जाने से मेरा वहुत ही झंझट बढ़ गया है । मुझे दो एक दिन में ही आठ दस दिन के लिये जमीदारी में जाना पड़ेगा। वहाँ से लौटने पर और विषय निवेदन करूँगा। इसके साथ आपका आगे का पत्र भी स्मरणार्थ भेजता हूँ प्रत्युत्तर में मैंने जो सब विषय लिखा था वह अवश्य यथासमय पहुँचा होगा । खेद की बात है कि आज तक न तो उस पत्र का पहुँच ही मिला और न आपने उस पर ध्यान ही दिया । सो कृपया मेरे पत्रोत्तर को पुनः पढकर उस पर शीघ्र ही योग्य ध्यान दीजिएगा। आपके पत्रोत्तर की अपेक्षा मे रहे। ___ आगे राजगिर के मुकदमे के समय आपने वहाँ से कृपा करके तीर्थकल्प की प्रति मुझे भेजी थी उस प्रति की और आवश्यकता नही रहने के कारण रजिस्ट्री डाक पार्सल से आपकी सेवा में भेज दी है। आशा है कि यथा समय आपको मिली होगी। मेरे संग्रह में प्रवन्ध चिन्तामणि की प्रति नहीं है प्रयोध चिन्तामणि की प्रति एक है यह दूसरा ग्रन्थ है इसलिये भेजा नहीं। और योग्य सेवा लिखते रहे ज्यादा शुभ स० १९८३ मि० फाल्गुण वि० ५ निवेदक पूरणचन्द नाहर की वन्दना P.C. Nahar M.A. B. L. Vakil High Court Phone Cal. 255 (२७) 48, Indian Mirror Street Calcutta 11-6-1927 परम श्रद्धास्पद प्राचार्य महाराज मुनि जिनविजय जी की सेवा मे । लि० पूरणचन्द नाहर का सविनय वदना अवधारिएगा यहाँ श्री जिन
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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