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________________ बाबू पूरणचन्दजी नाहर के पत्र ७५ परम पूज्य आचार्य महाराज श्री जिनविजय जी योग्य पूरण चंद नाहर की सविनय वंदना अवधारिएगा। यहा श्री देव गुरु धर्म के प्रसाद से कुशल हैं आपके शरीर सम्बन्धी सुख शाति हमेशा चाहते हैं। विशेष निवेदन है कि इन दिनो मे आपका कोई पत्र नही मिला आशा है आप कुशल मे होगे। आगे मैं कुछ दिनो के लिये बाहर गया था। यहाँ पर हलचल के कारण लौट आया हूँ। संवाद पत्रो मे पढ़ा होगा अव शांति है, चिन्ता कीजियेगा नहीं। ___ आगे राजगिरी की प्रशस्ती के शिलालेख की जो रविंग्ज भेजे थे उनको पुनः आवश्यकता हुई है सो कृपया पत्र पढ उन्हे फौरन रवाना कीजिएगा। जैन साहित्य सशोधक के दूसरे खड की चार संख्याएँ तो पहुँची हैं परन्तु सूची (Index & title page) नही मिली है। नही छपी हो तो शीघ्र छपाना चाहिये । छप गई हो तो कृपया भेजने का प्रबन्ध कर दीजिएगा। ___ पट्टावली के फर्मे (१-७) के दो सेट आज्ञानुसार भेजे है। आगे छपवाने का शीघ्र प्रबन्ध होना चाहिये । खर्च जो लगेगा समाचार आने पर भेजते रहेगे और छपने पर फरमे यहाँ भेजने का प्रवन्ध करा कीजिएगा। यहां से पुरातत्त्व मन्दिर के लिये आपकी खरीदी हुई और मेरी भेजी हुई जो पुस्तकें गई थी उनमे से जो जो पुस्तकें गड़बड़ होने का समाचार रसिक लाल भाई ने लिखा था उन पुस्तको का पता वहाँ लगा होगा आपका समाचार आने से मालूम होगा। आगे मथुरा के लेखो के साथ सोसायटी जनरल वगैरा जो रख आए थे उनमे से कुछ पुस्तकें नहीं आई हैं सो कृपया आपकी पुस्तको मे देखिएगा मिलने पर हमें भेजिएगा। यहां योग्य सेवा लिखिएगा ज्यादा शुभम् संवत् १९८३ मि० द्विचैत्र शु० ३ ता० १५-४-२६ दः पूरणचंद की वंदना अवधारिएगा
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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